भरतपुर. आखिर 35 साल का वक्त गुजरने के बाद बहुचर्चित डीग के राजा मानसिंह हत्याकांड केस में फैसला आ ही गया। उत्तरप्रदेश के मथुरा जिला न्यायालय की न्यायाधीश साधना रानी की अदालत में मंगलवार को सुनवाई हुई। अदालत ने 11 पुलिकर्मियों को दोषी माना, इसमें तत्कालीन सीओ कान सिंह भाटी, एसएचओ वीरेंद्र सिंह, सुखराम, जगराम, जगमोहन, शेर सिंह, पदमाराम, हरीसिंह, छतर सिंह, भंवर सिंह और रवि शेखर है। दोषी मानने के बाद तत्काल 11 दोषियों को पुलिस कस्टडी में ले लिया गया। इन सभी को धारा 148, 149, 302 के तहत दोषी करार दिया गया है। जिन तीन पुलिस कर्मियों पर जीडी में हेरफेर का आरोप था। इनके नाम हरिकिशन, गोविंद सिंह और कान सिंह हैं। इन्हें न्यायालय न्यायालय में हुए निर्दोष करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 35 साल पुराने इस मुकदमे की सुनवाई मथुरा जिला जज की अदालत में हो रही है। इसमें 14 पुलिसकर्मी ट्रायल पर थे। बहुचर्चित मामले को देखते हुए पुलिस ने अदालत परिसर में पहले से ही सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद कर ली गई थी। जिला जज की ओर से बुधवार को सभी 11 दोषियों को सजा सुनाई जाएगी। आरोपी पक्ष की ओर से पैरवी नंदकिशोर उपमन्यु व वादी पक्ष से नारायण सिंह विप्लवी ने की।
ज्ञात रहे कि 23 फरवरी 1985 को राजा मानसिंह के दामाद विजय सिंह ने डीग थाने में राजा मान सिंह और दो अन्य की हत्या का मामला दर्ज कराया था। इसमें सीओ कान सिंह भाटी, एसएचओ वीरेंद्र सिंह समेत कई पुलिसकर्मी आरोपी थे। इस वारदात के बाद डीग थाना के एसएचओ वीरेंद्र सिंह ने राजा मान सिंह के दामाद विजय सिंह सिरोही के खिलाफ 21 फरवरी को ही धारा 307 की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। राजा मान सिंह के दामाद और उनके साथी बाबूलाल को गिरफ्तार कर लिया गया था। उसी रात उनकी जमानत भी हुई और 22 फरवरी को राजा मान सिंह का दाह संस्कार महल के अंदर ही किया गया। तीन-चार दिन में यह मामला सीबीआई के सुपुर्द कर दिया गया था। सीबीआई ने हत्या से पूर्व दर्ज हुए मुकदमों में एफआर लाग दी। हत्या का मामला जयपुर की सीबीआई की विशेष अदालत में चला। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह मुकदमा वर्ष 1990 में मथुरा न्यायालय स्थानांतरित हो गया। हत्याकांड से एक दिन पहले 20 फरवरी 1985 को राजा मान सिंह के खिलाफ राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर का हेलीकॉप्टर और मंच को तोड़े जाने की एफआईआर दर्ज की गई थी। इसके बाद हुए दंगे में तीन और लोगों की भी मौत हुई थी।
दोषियों में सभी उम्रदराज, छलक पड़े आंसू
जब दोषियों को पुलिस कस्टडी में लेने के बाद बाहर लाया जा रहा था तो देखने में आया कि सभी उम्रदराज थे। साथ ही दो दोषियों के तो आंसू छलक पड़े। केस की सुनवाई के लिए राजस्थान पुलिस के 40 जवान इन सभी को लेकर कोर्ट पहुंचे। इसके अलावा उत्तरप्रदेश पुलिस की ओर से पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था की गई थी। दोषियों को पुलिस वाहन में बैठाते समय 11 में से एक वारंट नहीं मिला। ऐसे में पुलिसकर्मियों के भी पसीने छूट गए। बाद में मालूम चला कि वारंट किसी पुलिसकर्मी के पास ही रह गया था। तब जाकर पुलिसकर्मियों ने राहत की सांस ली।
78 गवाही के बाद मुकर्रर हो सकी निर्णय की तारीख
पूरे केस में 61 गवाह अभियोजन पक्ष की ओर से तथा 17 गवाह बचाव पक्ष की ओर से पेश किए गए। इनमें से बहुत से गवाह चश्मदीद भी थे। तारीख पर तारीख पडऩे के बाद निर्णय की तारीख तय हो सकी है। इस केस में 35 साल के दौरान करीब 1708 तारीख लगी। 30 से अधिक अधिवक्ता बदल गए। राजा मान सिंह हत्याकांड में सीबीआई की ओर से कुल 18 अभियुक्तों के खिलाफ चार्जशीट दी है। इनमें से तीन अभियुक्त एएसआई नेकीराम, कांस्टेबल कुलदीप और सीताराम की मौत हो चुकी है, जबकि कान सिंह भाटी के चालक महेंद्र सिंह को जिला जज की अदालत ने बरी कर दिया था।
अक्टूबर 2019 में अयोध्या की तर्ज पर सुनवाई की हो चुकी थी सिफारिश
यह केस पिछले 30 साल से मथुरा के जिला न्यायालय में चल रहा है। अक्टूबर 2019 में 22 अक्टूबर को सीबीआइ इस बात अड़ गई थी कि इस मुकदमे की सुनवाई बिल्कुल अयोध्या मामले की तर्ज पर न्यायालय में की जाए। चूंकि अकेले मथुरा न्यायालय में ही करीब 567 तारीख पड़ चुकी थी, लेकिन 35 साल बाद भी फैसला नहीं हुआ था। तब जाकर इस केस को त्वरित गति से सुनवाई करना शुरू किया गया।