कोरोना को सुन रखा था। इसकी भयावहता को समझता था और एक दिन इससे मुलाकात भी हो गई। पहले डरा फिर बेफिक्र सा हो गया..जो होगा देखा जाएगा। कोरोना से बहुत घबराने की जरूरत नहीं है। हालांकि इसका नाम भी बुरा है, होना भी खराब है लेकिन थोड़ी सी सतर्कता से इससे बचा जा सकता है।
मतलब...जिसे नहीं हुआ वह सतर्क रहे और जिसे हो गया है वह सकारात्मक रहे। 14 दिन क्वारेंटाइन में रहा तो लगा थोड़ा सा एहतियात बरत लेते तो अच्छा रहता। खैर, इस बीच मुझे दुआओं, संगीत और योग की शक्ति का अनुभव हुआ। मजबूत इच्छा शक्ति के सहारे मैं इससे जीत गया।
राजनेता और समाजसेवक हूं इसलिए जनता के दुख दर्द में शामिल होना मेरे स्वभाव में हूं। पढ़ना मेरा शौक है, थोड़े से अध्ययन के बाद मैंने सरकार को सोशल मीडिया पर चेताया भी था कि राजस्थान से चीन व यूरोप के तमाम देशों में आना जाना है, इसलिए सतर्कता जरूरी है। आज पूरा प्रदेश इस कोरोना से मुकाबला कर रहा है।
पिछले दिनों मैं जोधपुर दौरे से लौटा तो थकान सी हुई। सामान्य बुखार की दवा ले रहा था। फिर जयपुर में कोविड की जांच कराई। रात को 11:30 बजे डॉ. सुधीर भंडारी का फोन आया आपका टेस्ट पॉजिटिव है। सुना तो अंदर से हिल सा गया। कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करें? खैर, परिवार को जानकारी दी और खुद को आइसोलेट कर लिया।
देर रात तक नींद नहीं आई कि आगे क्या होगा? बहरहाल चिंता को दरकिनार कर ‘जो होगा देखा जाएगा’ की सोचकर सो गया। मुझमें लक्षण नहीं थे, इसलिए चिंता कम थी लेकिन डर यथावत था। फिर मैंने खुद को मानसिक रूप से मजबूत किया और तय कि घर में ही रहकर उपचार लूंगा। डॉक्टरों की भी सलाह थी कि बीमारी पर फोकस कम कीजिए। मैंने भी दृढ़ता दिखाई और खुद को मजबूत किया।
परामर्श के दौरान इलाज की हर पैथी में एक चीज कामन थी। गर्म नींबू पानी, तुलसी, अदरक, काली मिर्च, नमक के गरारे, नींबू चाय, नीम गिलोय और आंवला का सेवन। मैंने भी घरेलू उपचार को माध्यम बनाया। गर्म नींबू पानी, नीम गिलोय का काढ़ा, आधा घंटा प्राणायाम और संगीत को जीवन शैली में शामिल किया। एकांतवास में संगीत की शक्ति को महसूस किया।
हरिओम शरण जी की ‘हनुमान चालीसा’ शिव स्त्रोतम्, ओमकार मंत्र ने ऊर्जा दी। महसूस किया संगीत में भी समाधान है, निदान है। राग भैरवी, राग शिवरंजनी कुछ ऐसी ही राग है पं.जसराज, भीमसेन जोशी, सुब्बुलक्ष्मी आदि के कंठ से निकली वाणी ने वास्तव में एक नये प्रयोग का साक्षात्कार करवाया। रोग ने कुछ लिया है तो कुछ दिया भी है। 14 दिन के ठहराव ने बता दिया कि दौड़ने के साथ-साथ कुछ पल सुस्ताने भी हैं, ताकि आगे की दौड़ के लिए ऊर्जा को फिर से संग्रहित कर लें। एकांतवास चिंतन और समाधान भी देता है।
रचनात्मकता में वृद्धि होती जाती है। पहला तो बचाव ही उपाय है। सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क और सैनिटाइजर जरूरी है और लापरवाही होती है तो 14 दिन के लिए धैर्यपूर्वक कोरोना वायरस के लिए समर्पित हो जाओ। एलोपैथी को जांच और निर्धारित दवा, विटामिन सी और डी की पूर्ति, आवश्यकता पर बुखार और दर्द की दवा। लेकिन सर्वाधिक आसान उपाय है सुबह एक गिलास गर्म नींबू पानी, गरारे एवं दिन में 4-6 बार मुंह और नाक से विक्स की भाप से मदद करेगी।
14 दिन के एकांतवास का सबक यही है कि बीमारी बड़ी है, गंभीर भी है पर उपचार संभव नहीं है। घबराएं नहीं मुकाबला करें और सतर्क रहें। अंग्रेजी में कहावत है Prayer’s goes up blessing come down (प्रार्थनाएं ईश्वर तक जाती हैं, शुभेच्छाएं आती हैं)।
प्रदेशभर में मेरे लिए जो दुआएं और हवन किए गए, उससे मुझे स्वस्थ होने में बहुत लाभ मिला है। साथ ही एसएमएस के प्रिंसिपल डॉ. सुधीर भंडारी, प्रो. विनोद जोशी, ईएचसीसी के डॉ. आरएन खेदर, डॉ. गिरधर गोयल, आयुर्वेद चिकित्सक वृंदा राव, श्रीराम शर्मा, होम्योपैथिक चिकित्सक नेमीचंद पंवार का हृदय से धन्यवाद ज्ञापित करता हूं।
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