
चिकमंगलूर. नमिनाथ जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक संघ में शनिवार सुबह आचार्य महेन्द्रसागर सूरीश्वर आदि ठाणा का आगमन हुआ। संघ ने उनका स्वागत किया। जगह-जगह महिलाओं द्वारा गहुलियां की गईं। गुरु देव को अक्षत से बधाया गया। आचार्य ने कहा कि उपदेश सभी को दिया जाता है, परंतु अपनी-अपनी पात्रता के अनुसार ही श्रोता उसे ग्रहण करता है। नदी में पानी भरपूर है, परंतु जिसके पास जितना बड़ा पात्र होगा, उसी के अनुसार उसे पानी मिलने वाला है। उपदेश भी योग्य को ही दिया जाना चाहिए। अयोग्य को उपदेश देना, लाभ के बदले नुक्सान का कारण बनता है। क्योंकि कच्चे घड़े मे पानी भरने से घड़ा भी नष्ट होगा। पानी भी वेस्ट होगा। वर्षा का पानी, गर्म तवे पर पड़े तो भाप बन जाता है। सर्प के मुख मे गिरे तो जहर बन जाता है। समुद्र में गिरे तो अक्षय बन जाता है और स्वाति नक्षत्र में सीप के मुंह मै गिरे तो मोती बन जाता हैं। तीन प्रकार के श्रोता होते हैं। प्रथम एक कान से सुने और दूसरे कान से निकाल दे। उसकी कीमत फूटी कोड़ी की है। दोनों कान से सुने और मुंह से निकाल दे। तीसरा दोनों कान से सुने और जीवन में उतार ले, उसका मूल्य अमूल्य हैं। पढ़ा हुआ थोड़े समय के लिए याद रहता है और सुना हुआ हमेशा याद रह जाता है।
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