स्कूल फीस को लेकर अभी विवाद थमा भी नहीं है कि अब नए सत्र को लेकर भी विवाद खड़ा हो गया है। नए सत्र को लेकर भी निजी स्कूलों ने अभिभावकों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है केवल यही नहीु बहुत से निजी स्कूल संचालकों ने 15 से 30 फीसदी तक फीस बढ़ाकर अभिभावकों को सर्कुलर जारी कर दिए है और फीस जमा करवाने का चार्ट अभिभावकों के हाथों में थमा दिया है। संयुक्त अभिभावक संघ प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक जैन बिट्टू ने कहा कि प्रदेशभर से निजी स्कूलों की बहुत सी शिकायतें मिल रही हैं। हर जगह अभिभावक निजी स्कूलों की हठधर्मिता का शिकार हो रहे हैं। जयपुर में एमपीएस स्कूल ने नए सत्र को लेकर 15 फीसदी फीस बढ़ा दी है और अभिभावकों नए सत्र की भी फीस जमा करवाने के नोटिस थमा दिए हैं। ऐसी ही स्थिति अन्य स्कूलों की भी देखने को मिल रही है। कोविड काल मे ही एसएमएस स्कूल ने 30 फीसदी फीस बढ़ाकर अभिभावकों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया था। जबकि अभी तक सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश की लगातार धज्जियां उड़ा रहे हैं। निजी स्कूल संचालक कितनी भी हठधर्मिता दर्शा लें जब तक फीस एक्ट 2016 प्रदेश में लागू नहीं होता या राज्य सरकार फीस को लेकर कोई नियामक बोर्ड का गठन नहीं कर देती जब तक अभिभावक नए सत्र की फीस बिल्कुल भी नहीं जमा करवाएंगे। राज्य सरकार को फीस मसले को गंभीरता से लेते हुए स्कूलों की लागत के अनुसार फीस वसूलने जैसे बोर्ड का गठन कर ना केवल स्कूलों को सिस्टम से चलवाना चाहिए जिससे अभिभावकों और टीचरों को उचित न्याय मिल सके।
बच्चों का रिजल्ट रोक रहे स्कूल
संयुक्त अभिभावक संघ महामंत्री संजय गोयल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 8 फरवरी को अपने अंतरिम आदेश में स्पष्ट कहा कि कोई भी स्कूल संचालक फीस के चलते किसी भी बच्चे की पढ़ाई, एग्जाम और रिजल्ट बिल्कुल भी नहीं रोक सकते है। अधिकतर अभिभावक राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेशानुसार 50 से 70 फीसदी फीस जमा करवा चुके हैं उसके बावजूद बच्चों के रिजल्ट रोकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना कर रहे हंै। अगर निजी स्कूल संचालक अपनी हठधर्मिता बरकरार रखते हैं तो अभिभावकों को कोर्ट ऑफ कंटेप्ट का सहारा लेना पड़ेगा।
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