सर्वेश तिवारी श्रीमुख
चैत्र प्रारम्भ हो चुका है। प्रभु श्रीराम का महीना है चैत्र। नए हरे पत्तों और फूलों से सजी प्रकृति को देख कर सहज ही समझ में आ जाता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम ने अवतरित होने के लिए चैत्र को ही क्यों चुना। माघ की ओस में नहा कर पवित्र भाव से माथा झुकाए खड़े फलदार वृक्षों की पंक्ति जब स्वागत में खड़ी हो, तब आते हैं राम...। सोच कर देखिए न! युगों-युगों तक महाराज इक्ष्वाकु के कुल ने तपस्या की, तब उनके आंगन में राम उतरे थे। महाराज मनु और सतरूपा से लेकर हरिश्चंद्र, रोहित, सगर, भगीरथ, रघु, दिलीप और भी अनेक तपस्वियों की तपस्या का प्रतिफल मिला राम के रूप में। जब असंख्य पीढ़ी के पूर्वजों के सत्कर्मों का फल और आने वाली असंख्य पीढिय़ों का सौभाग्य जागृत होता है, तब किसी सौभाग्यवती कौशल्या की गोद में राम उतरते हैं।
राम को समझना है तो पहले महाराज दशरथ और माता कौशल्या को समझिए। पिता एक बड़े साम्राज्य के शासक होने के बाद भी राजा की तरह नहीं, एक संत की तरह जीवनयापन करते हैं। माता महारानी होने के बाद भी महारानी की तरह नहीं, सुमित्रा और कैकेयी की सहयोगी बन कर जीती हैं। माता-पिता की यही सहजता ही पुत्र को मर्यादा पुरुषोत्तम बनाती है। रामत्व को प्राप्त करने के लिए मनुष्य का सहज होना आवश्यक है। कथा है कि देवासुर संग्राम में महाराज दशरथ रानी कैकेयी को भी अपने साथ ले गए थे, जहां उन्होंने युद्ध में उनकी बहुत सहायता की थी। प्रसन्न हो कर महाराज ने उन्हें दो वरदान देने की बात कही थी। एक महारानी का युद्धभूमि में जाना स्वयं में एक बहुत बड़ी घटना है। अपने राजकीय कत्र्तव्य के प्रति ऐसा समर्पण कि अपनी पत्नी तक को युद्धभूमि में भेज दिया जाए, अद्भुत ही है। विश्व इतिहास में ऐसे उदाहरण अन्यत्र नहीं मिलते हैं।
तुलसी बाबा ने रामजन्म के लिए लिखा है कि 'विप्र धेनु सुर सन्त हित लीन्ह मनुज अवतार...।' सन्तान का चरित्र लगभग वैसा ही होता है जैसा उनके पूर्वजों का होता है। राम के पूर्वजों में सदैव से विप्र, धेनु, सुर और संत की रक्षा की भावना प्रबल रही थी। धेनु की रक्षा के लिए महाराज दिलीप ने सिंह को स्वयं के शरीर का मांस तक दे दिया था। सुर(देवता) की सहायता के लिए स्वयं महाराज दशरथ लड़े थे। तभी श्रीराम अपने जीवन में इन गुणों को सरलता से उतार सके। हम अपनी संतान में जो गुण देखना चाहते हैं, हमें पहले उन गुणों को अपने अंदर धारण करना चाहिए। तभी सन्तान गुणवान होती है।
मुझे लगता है कि चैत्र के महीने में सबको अपने परिवार में, इष्ट-मित्रों में, भगवान श्रीराम की कथा सुननी-सुनानी चाहिए। मर्यादा पुरुषोत्तम की मर्यादा को स्वयं में उतारने का यही सर्वश्रष्ठ समय है।
(लेखक पौराणिक पात्रों और कथानकों पर लेखन करते हैं)
source https://www.patrika.com/opinion/story-best-time-for-shri-ram-katha-6772607/