छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ इलाके में नक्सली हमले में 5 जवान शहीद हो गए। पिछले कुछ समय से देश में नक्सली गतिविधियां कम हुई हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ इसका अपवाद है। इस बार छत्तीसगढ़ में यह हमला इसलिए ज्यादा व्यथित करता है कि कुछ दिन पहले ही नक्सलियों के एक संगठन ने शांति वार्ता की पेशकश की थी। इस नक्सली हमले के बाद शांति वार्ता के प्रयासों में बाधा आएगी। यह पहली बार नहीं है जब नक्सलियों ने आइईडी ब्लास्ट के जरिए जवानों पर हमला किया है। आमतौर पर नक्सली जवानों को निशाना बनाने के लिए उनके रास्ते में विस्फोटक सामग्री बिछा देते हैं। ताजा हमले के बाद क्या यह नहीं माना जाएगा कि नक्सलियों की दिलचस्पी किसी भी तरह की शांति वार्ता में नहीं है? यह भी गौरतलब है कि शांति वार्ता के लिए नक्सलियों की शर्तों को लेकर सरकारी पक्ष के विरोधाभासी बयान सामने आए। संभव है कि सरकार पर दबाव बनाने के लिए भी नक्सलियों ने इस हमले को अंजाम दिया हो।
बस्तर में सीपीआइ (माओवादी) की दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी (डीकेएसजेडसी) के प्रवक्ता की ओर से जारी एक पर्चे में कहा गया था कि वे शांति वार्ता के लिए तैयार हैं, बशर्ते नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्रों से पुलिस और सुरक्षाबलों के शिविर हटा दिए जाएं। साथ ही उनकी पार्टी पर लगा प्रतिबंध खत्म हो। जेल में बंद उनके नेताओं को रिहा करने की शर्त भी लगाई गई। नक्सलियों ने जिस तरह की शर्तें रखी हैं, उनको मानना जोखिम भरा है, क्योंकि माना जाता है कि नक्सली अपनी बात पर कायम नहीं रहते और शांति की बात करते-करते हमलावर हो जाते हैं। छत्तीसगढ़ में वर्ष 2019 में नक्सली हमलों में 22 जवान शहीद हुए थे, लेकिन 2020 में 36 जवान नक्सली हमलों में शहीद हो गए। यह वाकई चिंता की बात है। सरकार को नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नई रणनीति के साथ काम करने की जरूरत है। अपनी पुरानी रणनीति की समीक्षा भी करनी होगी। साथ ही नक्सलियों की तरफ से आए शांति वार्ता के प्रस्ताव को सरकार को तुरंत खारिज नहीं करना चाहिए, हालांकि इसमेें कुछ जोखिम है, लेकिन शांति के लिए इतना जोखिम लिया जा सकता है।
नक्सल प्रभावित राज्यों को उन क्षेत्रों में विकास की गति भी बढ़ानी होगी, जहां नक्सलियों का प्रभाव है। विकास का नेटवर्क बढ़ेगा तो प्रभावित इलाकों में नक्सलियों की पकड़ भी कमजोर होने लगेगी। बेहतर तो यह है कि नक्सली भी समय को देखते हुए हिंसा का रास्ता त्यागें। उनको यह बात स्वीकार करनी चाहिए कि लोकतंत्र में परिवर्तन बंदूक के जरिए नहीं, बल्कि जनता के वोट की ताकत के बल पर होता है।
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