गोपाल कृष्ण अग्रवाल, राष्ट्रीय प्रवक्ता, भाजपा
भीषण महामारी के रूप में कोरोना की दूसरी लहर ने देश को झकझोर कर रख दिया है। अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री या चिकित्सक, किसी ने इतना व्यापक प्रकोप नहीं सोचा था। आज की परिस्थिति को देखकर यह कहा जा सकता है कि सभी संस्थानों, राज्य और केंद्र सरकारों को अधिक सजग होकर तैयारी करनी चाहिए थी।
भारतीय संविधान के अंतर्गत, प्रजातंत्र में अलग-अलग जिम्मेदारियों के निर्वहन का प्रावधान है, फिर वह चुनाव आयोग हो, न्यायिक संस्थाएं हों, आइसीएमआर हो या प्रदेश सरकारों के अंतर्गत आने वाली स्वास्थ्य व्यवस्था हो। केंद्र सरकार ने अपनी तरफ से व्यवस्थाओं को सुचारु और दुरुस्त करने के लिए कई अहम निर्णय लिए हैं और उन्हें तीव्र गति से चालू भी किया है। सबसे अहम था ऑक्सीजन आपूर्ति सुनिश्चित करना। देश में कुल 7500 मीट्रिक टन प्रतिदिन की ऑक्सीजन का उत्पादन होता है, जो ज्यादातर औद्योगिक उपयोग के लिए है। चिकित्सा के लिए अभी कुल मांग करीब 7000 मीट्रिक टन है। केंद्र ने तुरंत औद्योगिक उपयोग पर प्रतिबंध लगाया है। 50 हजार मीट्रिक टन आयात का निर्णय लेकर ऑर्डर दिया गया है।
बड़ी समस्या यह है कि इस ऑक्सीजन को उत्पादन केंद्र से अस्पतालों में सुचारु रूप से तुरंत पहुंचाना। सरकार ने ऑक्सीजन एक्सप्रेस चलाई, एयरफोर्स के विमानों द्वारा एयरलिफ्ट किए गए। ऑक्सीजन कंटेनर्स विदेशों से आयात किए गए। नाइट्रोजन टैंकर्स को ऑक्सीजन की आवाजाही के लिए प्रयोग में लाया गया। ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए अप्रेल 2020 में पीएम केयर्स फंड से १६२ ऑक्सीजन प्लांट के लिए धनराशि आवंटित की गई थी, लेकिन प्रदेश सरकार उन्हें चालू नहीं करवा पाई। उन्हें तीव्रता प्रदान की गई है। अभी प्रधानमंत्री ने 551 नए प्लांट को सभी जिलों में लगवाने के लिए मंजूरी दी है। विदेशों से ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर और पोर्टेबल ऑक्सीजन प्लांट भी बड़ी मात्रा में आयात किए जा रहे हैं। कल ऑक्सीजन एक्सप्रेस से 450 मीट्रिक टन ऑक्सीजन को विभिन्न प्रदेशों में पहुंचाया है। अगले चार-पांच दिन में सुचारु आपूर्ति व्यवस्था शुरू हो जाएगी। कोरोना की लड़ाई में इस ऑक्सीजन की आपूर्ति के बाद अस्पताल के बेड की व्यवस्था में मुश्किल नहीं आएगी। डीआरडीओ, आइटीबीपी के साथ कई सामाजिक संस्थाएं सामने आ गई हैं।
कोरोना की पहली लहर को भी भारत सरकार ने पूरी सक्रियता के साथ संभाला था। तब हमारा स्वास्थ्य ढांचा मजबूत नहीं था। हमारे यहां पीपीई किट और वेंटिलेटर नहीं बनते थे। लेकिन सरकार ने बहुत तेजी से स्वास्थ्य ढांचे को विकसित किया। दवा और टीका बनाने वाली कंपनियों को भी शोध और विकास में पूरा सहयोग किया गया। पहली लहर खत्म होने लगी तो केंद्र ने अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए 'आत्मनिर्भर भारत' के अंतर्गत 21 लाख करोड़ के आर्थिक सहायता पैकेज की घोषणा की। इससे नीचे गई अर्थव्यवस्था तेजी से ऊपर की ओर अग्रसर हो गई। विश्व भी मान रहा था कि आने वाले वर्षों में भारत दो अंकों की विकास दर हासिल करेगा।
इस लड़ाई का एक महत्त्वपूर्ण पहलू वैक्सीनेशन है। सरकार ने 1 मई से 18 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के लिए वैक्सीनेशन की प्रक्रिया शुरू कर दी है। भारत का सौभाग्य है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत की दो कंपनियां वैक्सीन बना रही हैं और ये विश्व में सबसे सस्ती भी हैं। भारत बीते कुछ समय में विश्व में दवाइयों के उत्पादन का केंद्र बनकर उभरा है। समय विकट है सभी को सामूहिक रूप से यह लड़ाई लडऩी है। अवश्य हम इस त्रासदी पर विजय पाएंगे। हमारा सौभाग्य है कि इस विकट परिस्थिति में हमारा नेतृत्व पूर्ण सक्षमता के साथ संवेदना पूर्वक अग्रसर है।
source https://www.patrika.com/opinion/central-government-actively-worked-to-improve-the-system-6822313/