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शनिवार, 24 अप्रैल 2021

राजनीति से अलग हों आपदा से जुड़ी बैठकें

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना की दूसरी जानलेवा लहर से बुरी तरह प्रभावित देश के ग्यारह राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेश के मुख्यमंत्रियों से शुक्रवार को व्यापक विचार-विमर्श किया। पिछले कुछ वर्षों से यह परम्परा सी हो गई है कि ऐसी हर चर्चा आपसी टकराव और विवादों से शुरू होती है और उन्हीं के साथ खत्म होती है। ऐसा नहीं है कि ऐसी बैठकों से, चाहे वे वर्चुअल ही क्यों न हों, देश को कुछ मिलता नहीं। लेकिन, आपसी कलह और राजनीति इतनी हावी हो जाती है कि जो मिलता है, वह भी नहीं मिले जैसा हो जाता है। दर्द में डूबी जनता के लिए राहत के बिंदु उसमें से गायब हो जाते हैं।

शुक्रवार की बात करें तो विवाद, कोरोना जैसी राष्ट्रीय आपदा पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के सम्बोधन का सीधा प्रसारण (लाइव टेलीकास्ट) करने को लेकर हुआ। चलती बैठक में उन्हें प्रधानमंत्री ने टोका कि ऐसी आंतरिक बैठकों का सीधा प्रसारण नहीं होता और यह प्रोटोकॉल के खिलाफ है। इस पर केजरीवाल ने यह कहकर कि सीधा नहीं दिखाने के कोई निर्देश नहीं थे, आगे ऐसा नहीं करने की बात कह दी। बाद में उन्होंने माफी भी मांग ली। सामान्य माहौल होता, तो मामला यहीं खत्म हो जाता, लेकिन वैसा माहौल तो सालों से गायब है। खास तौर पर दिल्ली के मुख्यमंत्री को लेकर। दोनों ही ओर से एक-दूसरे पर हमले के मौके तलाशे जाते हैं।

यह भी सच है कि आज की तारीख में गैर भाजपा दलों में अरविन्द केजरीवाल, ममता बनर्जी, अशोक गहलोत जैसे कुछ ही नेता हैं, जो भाजपा और उसके नेताओं को उन्हीं की भाषा में जवाब देने का कोई अवसर नहीं छोड़ते हैं। फिर चाहे वह सर्जिकल स्ट्राइक का मौका हो या फिर लोकसभा अथवा बंगाल के विधानसभा चुनावों में विदेशी धरती पर जाकर सभा-समारोह करने का। देश के टीवी चैनलों पर होने वाला उनका लाइव प्रसारण चुनाव आयोग की आचार-संहिता में भले न आए, लेकिन जनता तो सब समझती है। ऐसे में केजरीवाल ने जो किया, उसे सामान्य भूल की जगह सोची-समझी राजनीति मानना ज्यादा उपयुक्त होगा।

तीन बार के मुख्यमंत्री के साथ केजरीवाल वरिष्ठ नौकरशाह भी रहे हैं। ऐसे में राजनीति का कोई नौसिखिया भी यह मानने को तैयार नहीं होगा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री को इतनी छोटी सी बात भी मालूम नहीं होगी। यह सच है कि ऐसी बैठकों के सीधे प्रसारण की कोई परम्परा नहीं है, लेकिन पारदर्शिता की बातों के जमाने में तो कम से कम सब बातें नए सिरे से तय होनी चाहिए। फिर ऐसा मौका न आए और ऐसी बैठकों में सबको समान अवसर मिलें, यह सुनिश्चित होना ही चाहिए।



source https://www.patrika.com/opinion/meetings-related-to-disaster-should-be-separate-from-politics-6814455/