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गुरुवार, 15 अप्रैल 2021

Chaitra Navratri 2021 - Day3 - Tritiya Chandraghanta : चैत्र नवरात्र तृतीया के दिन ऐसे करें देवी चंद्रघंटा की आराधना, जानें पूजा के नियम

चैत्र नवरात्र तृतीया के दिन मां दुर्गाजी ( Devi Durga ) की तीसरी शक्ति देवी चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। जानकारों के अनुसार नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन मां चंद्रघंटा के विग्रह की पूजा-आराधना की जाती है। देवी मां की ये शक्ति यानि मां चंद्रघंटा शत्रुहंता के रूप में विख्यात हैं। ऐसे में आज यानि 15 अप्रैल 2021, बृहस्पतिवार के दिन चैत्र नवरात्र तृतीया है।

पंडित सुरेश पांडे के अनुसार भक्त को मां चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है और विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियां सुनाई देती हैं। ये क्षण साधक के लिए अत्यंत सावधान रहने के होते हैं।

इसके अलावा मां चंद्रघंटा का दिव्य रूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनकी आराधना ( Puja path )से समस्त शत्रुओं और भाग्य की बाधाओं का नाश होकर अपार सुख-सम्पत्ति मिलती है।

temples of maa durga

देवी चंद्रघंटा की पूजा विधि: poojan vidhi of maa chandraghanta

तीसरे दिन की पूजा में माता की चौकी (बाजोट) पर माता चंद्रघंटा की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टीके घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना ( Ghatasthapana ) करें।

मां चंद्रघंटा के चित्र अथवा प्रतिमा को सुन्दर ढंग से सजाकर फूल-माला अर्पण करें। उसके बाद दीपक जलाएं, प्रसाद चढ़ाएं और मन, वचन और कर्म से शुद्ध होकर मंत्र का 108 बार जप करें।

'या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।'

इसके बाद पूजन का संकल्प लें और वैदिक और सप्तशती ( Durga saptshati ) मंत्रों द्वारा मां चंद्रघंटा सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधितद्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्रपुष्पांजलि आदि करें। इसके बाद प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।

durga saptshati benifits on navratri

मां चंद्रघंटा का उपासना मंत्र:
पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते महयं चन्दघण्टेति विश्रुता।।

ध्यान :
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम।
खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम।
मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम॥

स्तोत्र पाठ:
आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्ति: शुभपराम्।
अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा प्रणमाभ्यम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपणीम्।
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाभ्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छानयी ऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटप्रणमाभ्यहम्॥

चन्द्रघंटा कवच:
रहस्यं श्रुणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।
श्री चन्द्रघन्टास्य कवचं सर्वसिध्दिदायकम्॥

बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोध्दा बिना होमं।
स्नानं शौचादि नास्ति श्रध्दामात्रेण सिध्दिदाम॥

कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय च न दातव्यं न दातव्यं न दातव्यं कदाचितम्॥

माना जाता है कि देवी चन्द्रघंटा की पूजा और भक्ति करने से आध्यात्मिक शक्ति मिलती है। नवरात्रि के तीसरे दिन ( 3rd day of navratri ) जो भी माता के तीसरे रूप मां चन्द्रघण्टा की पूजा अर्चना करता है, उन सभी को माता की कृपा प्राप्त होती है।

Goddess signals

नवरात्रि के तीसरे दिन माता की पूजा के लिए सबसे पहले कलश की पूजा करके सभी देवी देवताओं और माता के परिवार के देवता, गणेश, लक्ष्मी, विजया, कार्तिकेय, देवी सरस्वती, एवं जया नामक योगिनी की पूजा करें उसके बाद फिर माता देवी चन्द्रघंटा की पूजा अर्चना करें।

इसके अलावा कई बार जीवन में अशुभ ग्रहों ( Bad Planets ) की वजह से भी, कई मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं। जीवन रुपी आकाश में संकट के बादल घिर जाते हैं। आशा की एक किरण भी नजऱ नहीं आती। ऐसे अशुभ ग्रहों से उपजे संकट का नाश मां चंद्रघंटा करती हैं...

मां चंद्रघंटा का संकटनाशक मंत्र:
हिनस्ति दैत्य तेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योह्यन: सुतानिव।।

most powerful goddess

देवी चंद्रघंटा की पूजा के नियम : Rules of poojan Devi Chandraghanta

माना जाता है कि चंद्रघंटा माता की पूजा से जातक के जीवन में सुख-समृद्धि आती है, इसीलिए माता की पूजा के लिए आपको शुभ मुहूर्त का ध्यान रखना बेहद जरूरी है।

: नवरात्रि के तृतीया यानि तीसरे दिन मां दुर्गा ( Goddess durga ) के चंद्रघंटा रूप की पूजा के लिए प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान आदि कर लें।

: मां की पूजा के लिए आप लाल वस्त्र ही धारण करें।

: पूजा में सबसे पहले देवी को केसर और केवड़ा के जल से स्नान कराएं।

: उसके बाद माता चंद्रघंटा को सुनहरे रंग के वस्त्र पहनाकर उन्हें अच्छी तरह सजा लें।

: पूजा में माता को केसर और दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं। इसके अलावा मां चंद्रघंटा को गुड़ व लाल सेब भी ज़रूर चढ़ाएं। ये सारी वस्तुएं माता रानी को बहुत प्रिय हैं।

: अब मां चंद्रघंटा को सफ़ेद कमल और पीले गुलाब की माला पहनाएं।

: मां को लाल फूल, तांबे का सिक्का या तांबे की वस्तु चढ़ाएं।

: पूजा के दौरान मंत्र ( puja mantra ) का जाप अवश्य करें।
मंत्र : “या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः”

: इसके बाद माता की आरती करें और आरती के समय घंटा बजाएं।

: चंद्रघंटा देवी की पूजा के बाद प्रसाद के रूप में गाय का दूध चढ़ाया जाता है। ऐसा करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।

= ध्यान रखें कि यदि आपने नौ दिनों का व्रत रखा है, तो पूजा के बाद केवल एक समय ही फलहार करें।

इसलिए नाम पड़ा मां चंद्रघंटा
इन देवी मां के मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है इसीलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। इनके शरीर का रंग सोने के समान होने के साथ ही इनके दस हाथ ( Goddess ) हैं। इन हाथों में खड्ग, अस्त्र-शस्त्र और कमंडल विद्यमान हैं।

मां चंद्रघंटा का स्वरूप : मां का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे का आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण से इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनके दस हाथ हैं। मां चंद्रघंटा के दस भुजाएं हैं और दसों हाथों में खड्ग, बाण सुशोभित हैं। इन्हें शक्ति और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

माता चन्द्रघंटा देवी का शरीर शरीर सोने की तरह चमकता हुआ प्रतीत होता है। ऐसी मान्यता है कि माता के घंटे की तेज व भयानक ध्वनि से दानव, और अत्याचारी राक्षस सभी बहुत डरते है देवी चंद्रघंटा अपने भक्तों को अलौकिक सुख देने वाली है। माता चंद्रघंटा का वाहन सिंह है। यह हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहने वाली मुद्रा में होती है। मां चंद्रघंटा के गले में सफेद फूलों की माला रहती है।

देवी मां का भोग :
मां चंद्रघंटा ( Devi Durga avtar ) को दूध और उससे बनी चीजों का भोग लगाएं और और इसी का दान भी करें। ऐसा करने से मां खुश होती हैं और सभी दुखों का नाश करती हैं। इसमें भी मां चंद्रघंटा को मखाने की खीर का भोग लगाना श्रेयकर माना गया है।

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मां चंद्रघंटा की पौराणिक कथा : Mythological story of Goddess Chandraghanta

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार जब दैत्यों का आतंक बढ़ने लगा, तब असुरों का संहार करने के लिए मां दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का अवतार लिया। उस समय असुरों का स्वामी महिषासुर था, जिसका देवताओं के साथ भयंकर युद्ध चल रहा था।

महिषासुर देव राज इंद्र का सिंहासन और स्वर्ग-लोक पर राज करना चाहता था। उसकी आतंक से परेशान होकर सभी देवता इस समस्या से निकलने का समाधान जानने के लिए त्रिदेवों यानि भगवान ब्रह्मा, विष्णु ( Lord Vishnu ) और महेश ( lord Shiv ) के समक्ष पहुचें।

देवताओं की परेशानी को सुनने के बाद त्रिदेवों को अत्यंत क्रोध आया और क्रोध के चलते उनके मुख से एक ऊर्जा निकली, जिससे एक देवी अवतरित हुईं। देवी को भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल और भगवान विष्णु ने अपना चक्र प्रदान किया।

इसी प्रकार अन्य सभी देवी- देवताओं ने भी माता को अपने अस्त्र सौंप दिए। देव राज इंद्र ने भी देवी को एक घंटा दिया। सूर्य देव ( Surya dev ) ने अपना तेज और तलवार दी, साथ सवारी के लिए माता को सिंह प्रदान किया।

सभी अस्त्र-शस्त्र के साथ मां चंद्रघंटा महिषासुर से युद्ध करने पहुंची। मां का रूप देखकर महिषासुर को यह आभास हो गया कि उसका काल समीप आ गया है। महिषासुर और देवी में और देवताओं व असुरों में भयंकर युद्ध शुरू हो गया। और अंत में मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का संहार कर देवताओं की रक्षा की।

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मां चंद्रघंटा की पूजा का महत्व : Importance of Goddess Chandraghanta

इनकी पूजा करने से शत्रुओं का नाश होता है और अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं। इनकी कृपा से भक्त इस संसार में सभी प्रकार के सुख प्राप्त कर मृत्यु के पश्चात मोक्ष को प्राप्त करता है।

देवी चन्द्रघंटा की भक्ति से आध्यात्मिक और आत्मिक शक्ति प्राप्त होती है। जो व्यक्ति मां चंद्रघंटा की श्रद्धा व भक्ति भाव सहित पूजा करता है, उसे मां की कृपा प्राप्त होती है। जिससे वह संसार में यश, कीर्ति और सम्मान प्राप्त करता है।

माना जाता है कि मां के भक्त के शरीर से अदृश्य उर्जा का विकिरण होता रहता है, जिससे वह जहां भी होते हैं वहां का वातावरण पवित्र और शुद्ध हो जाता है। इनके घंटे की ध्वनि सदैव भक्तों की प्रेत-बाधा आदि से रक्षा करती है साथ ही जहां भी भक्त जाता है उस स्थान से भूत, प्रेत एवं अन्य प्रकार की सभी बाधाएं दूर हो जाती है।

कहा जाता है कि जो साधक योग साधना कर रहे हैं, उनके लिए यह दिन इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इस दिन कुण्डलनी जागृत करने के लिए स्वाधिष्ठान चक्र से एक चक्र आगे बढकऱ मणिपूरक चक्र का अभ्यास करते हैं।

इस दिन साधक का मन ‘मणिपूर’ चक्र में प्रविष्ट होता है। इस देवी की पंचोपचार सहित पूजा करने के बाद उनका आशीर्वाद प्राप्त कर योग का अभ्यास करने से साधक को अपने प्रयास में आसानी से सफलता मिलती है।



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