जयपुर. 18 अप्रैल को चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि है। इस दिन मां दुर्गा के छठवें स्वरूप माता कात्यायनी की पूजा की जाती है। महर्षि कात्यायन की पुत्री होने के कारण इनका नाम कात्यायनी हुआ। महिषासुर का अत्याचार बढ़ जाने पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने सम्मिलित तेज से देवी कात्यायनी को उत्पन्न किया था जिन्होंने महिषासुर का वध कर दिया।
विशेष बात यह है कि मां कात्यायनी प्रेमल हैं, पति—पत्नी, प्रेमी—प्रेमिका में परस्पर प्यार बढ़ाती हैं। कृष्ण को पति के रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने यमुना तट पर माता कात्यायनी की ही आराधना की थी। यही कारण है कि मां कात्यायनी ब्रज की अधिष्ठात्री देवी मानी गई हैं। कात्यायनी माता की पूजा से सभी दुख दूर हो जाते हैं।
ज्योतिषाचार्य पंडित सोमेश परसाई बताते हैं कि उनका दिव्य स्वरूप है। सिंह पर सवार माता कात्यायनी की चार भुजाएं हैं। मां के एक हाथ में तलवार है व एक अन्य हाथ में कमल का फूल रहता है। ऊपर वाला एक हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला एक हाथ वर मुद्रा में रहता है। मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। माता अपने सच्चे उपासक को परम पद दे देती हैं।
वर्तमान युग में मां कात्यायनी का सर्वाधिक महत्व है। ज्योतिषाचार्य पंडित नरेंद्र नागर के अनुसार इसकी अहम वजह भी है। यह युग वैज्ञानिक युग माना जाता है और मां कात्यायनी विज्ञान—शोध की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। शोधकार्य करना इनका प्रमुख गुण माना गया है। इसीलिए खासतौर पर युवाओं को माता कात्यायनी की उपासना जरूर करना चाहिए।
मंत्र:
1.
या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता
नमस्तमै, नमस्तमै, नमस्तमै नमो नम:
2.
मंत्र - ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥
3.
मंत्र - 'ॐ ह्रीं नम:।।
4.
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानव-घातिनी॥
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