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शुक्रवार, 14 मई 2021

परशुराम जयंती 2021 : अक्षय तृतीया पर ही क्यों होती हैं पूजा, जानिए शुभ मुहूर्त और महत्व

नई दिल्ली। भगवान विष्णुजी के छठे अवतार भगवान परशुराम जी का जन्मोत्सव आज मनाया जा रहा है। परशुराम का जन्म ब्राह्मण कुल में वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर हुआ था। भगवान परशुरामजी चिरंजीवी हैं और सशरीर पृथ्वी पर मौजूद हैं। भगवान परशुराम जी ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र हैं। यह तिथि बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस तृतीया को अक्षय तृतीया भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म अन्याय, अधर्म और पापकर्मों का विनाश करने के लिए हुआ था। आइए जानते हैं भगवान परशुराम से जुड़ी कुछ खास बातें।

पूजा मुहूर्त
प्रदोष काल में परशुराम जी की पूजा करना शुभ माना गया है। माना जाता है कि परशुराम जी का जन्मोत्सव प्रदोष काल सूर्यास्त के बाद और रात से पहले के समय हुआ था। 14 मई को प्रदोष काल में सूर्यास्त शाम को 07 बजकर 04 मिनट पर होगा। राहुकाल दिन में 10 बजकर 36 मिनट से दोपहर 12 बजकर 18 मिनट तक है। जन्मोत्सव के समय राहुकाल का ध्यान अवश्य रखें।

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परशुराम जयंती पूजा विधि
परशुराम जयंती पर सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर करना चाहिए। इस दिन व्रत रखने की भी परंपरा है। पूजा घर को गंगाजल से शुद्ध करने के बाद एक चौकी पर साफ कपड़ा बिछा कर भगवान परशुराम जी की मूर्ति या तस्वीर को उस पर स्थापित करें। अब उनके चरणों में फूल और अक्षत अर्पित करे और अन्य पूजन सामग्री चढ़ाइए। पूजन सामग्री अर्पित करने के बाद भगवान परशुराम को मिठाई का भोग अवश्य लगाइए फिर धूप दीप से उनकी आरती कीजिए।

परशुराम जयंती का महत्व
भगवान परशुराम की पूजा करने से व्यक्ति का डर समाप्त हो जाता है। इसके साथ ही आत्मविश्वास में भी वृद्धि होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार परशुराम जी एक मात्र ऐसे अवतार हैं, जो आज भी पृथ्वी पर जीवित हैं। दक्षिण भारत के उडुपी के पास परशुराम जी का बड़ा मंदिर है। कल्कि पुराण के अनुसार, जब कलयुग में भगवान विष्णु के 10वें अवतार कल्कि अवतरित होंगे, तो परशुराम जी ही उनको अस्त्र-शस्त्र में पारंगत करेंगे। भगवान राम से मुलाकात के बाद परशुराम जी भगवान विष्णु के अन्य अवतार से मिलेंगे। परशुराम जी भगवान शंकर के परम भक्त हैं। भोलेनाथ ने ही परशुराम जी को एक अमोघ अस्त्र− परशु प्रदान किया था।



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