नई दिल्ली। हिंदू धर्म में प्रत्येक तिथि और वार का बहुत अधिक महत्व होता है। उनमें से एक है एकादशी। ग्यारस अर्थात ग्यारह तिथि को एकादशी कहा जाता है। हर शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में यह यह तिथि दो बार आती है। हिन्दू धर्म में एकादशी बड़ा महत्व होता है। वैशाख के महीने में शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी तिथि को 'मोहिनी एकादशी' के नाम से जाना जाता है। इस साल 23 मई को मोहिनी एकादशी है। भावनाओं और मोह से मुक्ति की इच्छा रखने वालों के लिए भी वैशाख मास की एकादशी का विशेष महत्व है। मोहिनी एकादशी के दिन श्री हरि के राम स्वरूप की आराधना की जाती है।
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मोहिनी एकादशी के शुभ मुहूर्त:-
मोहिनी एकादशी 22 मई शनिवार को 9:15 बजे से शुरू हो जाएगी। यह 23 मई रविवार को 6:45 बजे समाप्त होगी। पारण का समय या एकादशी व्रत तोड़ने का समय अगले दिन 24 मई दिन सोमवार को प्रात: 06 बजकर 01 मिनट से सुबह 08 बजकर 39 मिनट के मध्य पारण कर सकते हैं। पारण से पूर्व स्नान करें और उसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करें। फिर ब्राह्मणों को दान दें और अपना व्रत तोड़ लें।
मोहिनी एकादशी की पूजा विधि:—
मोहिनी एकादशी के दिन सुबह सबसे पहले घर की सफाई करें। उसके बाद स्नान कर पूजा घर में एक चौकी की स्थापना कर दें। इस चौकी पर एक पीले रंग का वस्त्र बिछा दें और विष्णु जी की मूर्ति इसपर रख दें। पीले फूल, पंचामृत और तुलसी दल अर्पित करें। फल भी अर्पित कर सकते हैं। विष्णु की पूजा करते वक्त तुलसी के पत्ते अवश्य रखें। विष्णु जी की पूजन करें और सुमद्र मंथन की कथा को पढ़ें।
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मोहिनी एकादशी व्रत का महत्व:—
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, मोहिनी एकादशी का व्रत नियम और निष्ठापूर्वक करन से मनुष्य के पापों का अंत होता है। ऐसा कहा जाता है कि मोहिनी एकादशी के दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है। इसी के साथ उसे अंत में मोक्ष की प्राप्ति होने की मान्यता है।
मोहिनी एकादशी पर इन नियमों का पालन करें:—
- एकादशी से एक दिन पूर्व ही व्रत के नियमों का पालन करें।
- जो लोग व्रत करते हैं उन्हें केवल जमीन पर ही सोना चाहिए।
- व्रत के दिन निर्जला व्रत करें।
- शाम के समय तुलसी के पास गाय के घी का एक दीपक जलाएं।
- इस दिन चावल खाना वर्जित माना जता है।
- रात के समय भगवान का भजन-कीर्तन करना चाहिए।
- अगले दिन पारण के समय किसी ब्राह्मण या गरीब को यथाशक्ति भोजन कराए और दक्षिणा देकर विदा करें।
- इसके बाद अन्न और जल ग्रहण कर व्रत का पारण करें।
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