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शुक्रवार, 7 मई 2021

इस त्रासदी में राजनेता इतने ठंडे क्यों ?

इस महामारी में सबसे ठंडा कोई नजर आ रहा है तो वे हैं हमारे राजनेता। जिन्हें, हमने ही अपना बहुमूल्य वोट देकर सबसे छोटी पंचायत से लेकर सबसे बड़ी पंचायत तक भेजा है। लोग बेचैन हैं। समाज बेचैन है। देश की अदालतें बेचैन हैं। रोज वहां से आने वाली आवाजें सरकारों को झकझोर रही हैं। लेकिन, राजनेताओं के लिए जनता प्राथमिकता में नहीं है। इस त्राहिमाम में भी कोई पार्टी लाइन से नहीं हटना चाहता। कोई अपनी पार्टी की सरकार को कठघरे में खड़ा करना नहीं चाहता। विपक्ष का बोलना संकट का राजनीतिक फायदा उठाने जैसा हो गया है। ऐसे में अदालतों से काफी आशा है।

दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पूरी हो गई है। शीर्ष अदालत ने केंद्र से पूछा है कोरोना की तीसरी लहर के लिए आपकी क्या तैयारी है? सरकार का जवाब जो भी हो उसे जमीन पर खोजना हमारे लिए मुश्किल न हो, तभी अदालतों की सक्रियता अर्थपूर्ण होगी। सौ साल में एक बार आने वाली कोरोना जैसी महामारियां सबके लिए परीक्षा की घड़ी होती हैं। इसमें व्यक्ति, मित्र, परिवार और समाज की ही पहचान नहीं होती, देशों और उसके शासकों की हकीकत भी सामने आ जाती है। पिछले एक साल से ज्यादा समय से हम भारतवासी भी ऐसी ही वास्तविकताओं से रू-ब-रू हो रहे हैं। हम देख रहे हैं कि किस तरह एक तरफ महामारी का फायदा उठाकर मुनाफाखोर चांदी काटने में जुटे हैं, तो दूसरी तरफ ऐसे लोगों की भी कोई कमी नहीं जो अपनी जिंदगी दांव पर लगाकर दूसरों की मदद कर रहे हैं। हम देख रहे हैं कि कैसे उन लोगों ने जरूरत पडऩे पर मुंह मोड़ लिए जिनसे सबसे ज्यादा उम्मीद थी। और अचानक मदद वहां से मिली जहां से मिलने की किसी को उम्मीद न थी।

किसने सोचा था कि ट्विटर पर टैग करके मदद मांगने पर सोनू सूद जैसा अभिनेता प्रकट हो जाएगा और ऑक्सीजन पहुंचाकर जान बचा लेगा? किसको अनुमान था कि उसी ऑक्सीजन की आपूर्ति में ताकतवर सरकारें असहाय हो जाएंगी? कौन जानता था जिन्हें जनता रोल मॉडल मानती रही, त्रासदी के दौर में वे सेलिब्रिटी बिलों (पांच सितारा) में गुम हो जाएंगे और वेल्डिंग कर दो जून की रोटी कमाने वाला ऑक्सीजन सिलेंडर (कमाई का जरिया) दान करके 'रोल मॉडल' बन जाएगा। अस्पतालों में बेड की अनुपलब्धता, दवाओं की कालाबाजारी, मेडिकल ऑक्सीजन की किल्लत के बीच एक-एक प्राण की रक्षा के लिए दिन-रात जूझते डॉक्टर-नर्स, तो दूसरी तरफ कुछ निजी अस्पतालों-कारोबारियों की मुनाफाखोरी। महामारी हमें सिक्के के दोनों पक्ष दिखा रही है। मुसीबत में जनता किस्मत के भरोसे रह जाए तो सरकार का होना या न होना बराबर है।



source https://www.patrika.com/opinion/why-are-politicians-so-cold-in-this-tragedy-6834288/