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गुरुवार, 6 मई 2021

काफी नहीं फटकार, सख्ती दिखाएं अदालतें

अदालती फटकार सुने बिना हमारे हुक्मरान जनता की खैर-खबर लेते हों, ऐसा देखने में कम ही आता है। कोरोना संक्रमण को लेकर रोज डराने वाली खबरों के बीच सुप्रीम कोर्ट से लेकर देश के कमोबेश सभी राज्यों के हाईकोर्ट लगातार हालात से निपटने में सरकारी नाकामियों को उजागर कर रहे हैं। पिछले दिनों अदालतों ने जितनी तीखी टिप्पणियों का इस्तेमाल जिम्मेदारों के लिए किया, उतना शायद पहले कभी नहीं किया होगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तो ऑक्सीजन की कमी से लोगों की मौत को नरसंहार की संज्ञा दी है। अस्पतालों में ऑक्सीजन न होने से कोविड मरीजों की मौत को तो हाईकोर्ट ने आपराधिक कृत्य तक बताया है।

यह सच है कि जब-जब हमारी सरकारें सुस्त नजर आती हैं, तो शीर्ष अदालत से लेकर निचली अदालतें तक नींद में गाफिल हुक्मरानों को जगाने का काम करती आई हैं। ऐसा लगता है कि जिम्मेदारों ने भी ठान लिया है कि अदालती चाबुक की फटकार पर ही कोई काम करेंगे। अदालती फटकार की ये खबरें मीडिया में सुर्खियां बनती हैं, लेकिन जिन्हेंं अदालती निर्देशों पर अमल करना है, वे तो जैसे आंखों पर पट्टी और कानों में रूई डाल कर बैठे हैं। ऐसे निर्देश आने पर थोड़ी हलचल जरूर होती है, लेकिन फिर वही पुराने ढर्रे पर काम होने लगता है। अदालतें ज्यादा ही तल्खी दिखाएं, तो इसे 'न्यायिक सक्रियता' का नाम देकर आलोचना भी होने लगती है। तभी तो लॉकडाउन लगाने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट में पहुंच जाती है और मद्रास हाईकोर्ट की लताड़ को चुनाव आयोग दिल पर ले लेता है। दिल्ली हाईकोर्ट के अवमानना आदेश के खिलाफ केन्द्र सरकार सुप्रीम कोर्ट चली जाती है। गुजरात हाईकोर्ट इस बात को लेकर व्यथित नजर आता है कि कोरोना मामले में सरकार उसके आदेशों की अनदेखी कर रही है, वहीं सरकारें खुद की लापरवाही का ठीकरा जनता पर ही फोड़ती दिख रही हंै। दूसरी ओर सरकारों को लॉकडाउन लगाने के अलावा कोई उपाय सूझ नहीं रहा।

ऑक्सीजन की कमी, जीवनरक्षक इंजेक्शन व दवाओं की कालाबाजारी के साथ टीकाकरण में ढिलाई जारी है। इनको लेकर भी केंद्र और राज्य सरकारें एक दूसरे पर तोहमत लगाने में जुटी हैं। अस्पतालों में दाखिले के लिए समान राष्ट्रीय नीति, अस्पतालों में बेड का रियल टाइम अपडेट व दो घंटे में मरीजों को रेमडेसिविर पहुंचाने जैसे निर्देश सुकून पहुंचाने वाले लगते हैं, लेकिन इनकी पालना करने में देरी से कोरोना संक्रमित दम तोड़ते रहें, तो अदालतों को ही सख्ती दिखानी होगी।



source https://www.patrika.com/opinion/not-enough-reprimand-courts-should-show-strictness-6832698/