उत्तम मार्दव का अर्थ है व्यवहार में मधुरता लाना। जिसके व्यवहार में मधुरता आ गई, वह सामान्य रूप से अपना जीवन जीता है। ऐसा करना कठिन है। व्यक्ति सामान्य बनकर जीवन जीना पसंद नहीं करता है। वह कुछ विशेष चाहता है। यही भाव अहंकार काे जन्म देता है। व्यक्ति समझने लगता है कि उसके बिना कुछ नहीं हाे सकता है। वह अपने आप काे सर्वस्य मानने लगता है। यहीं सबसे बड़ी गड़बड़ शुरू हाे जाती है। अहंकार में उपजे मैं और मेरा भाव जीवन में दुखाें का सबसे बड़ा कारण है।
मानव मान ले कि संसार के जितने भी क्रिया कलाप हैं, सब अपने अपने नियमाें के अनुरूप हाेते रहते हैं। किसी के राेके कुछ नहीं रुकता है और किसी के लिए कुछ नहीं हाेता है। हम एक दूसरे के निमित हाे सकते हैं पर कर्ता नहीं। अहंकार काे समाप्त कर विश्व की अर्थ व्यवस्था में अपनी भूमिका काे समझने की आवश्यकता है। जगत में जाे कुछ हाे रहा है, उसमें प्रकृति की भागीदारी है। हम ताे उसके घटक मात्र हैं। घटक घटक ही हाेता है, कर्ता नहीं यह बात मन में मान लेने से सब कुछ ठीक रहता है।
काेई घटक अपने आपकाे सब कुछ मान ले ताे गड़बड़ी शुरू हाे जाती है, क्याेंकि यहीं से अहंकार मन में पनपता है। अहंकार करना हमारी अज्ञानता का प्रतीक है। मार्दव धर्म का यही संदेश है कि हम ब्राह्य संयाेगाें पर अभिमान न करें। आत्मा के स्वरूप काे समझें। जीवन में विनम्रता काे विकसित करें। मानें कि प्रकृति में प्रत्येक घटक समान हैं, मन में उत्पन्न समानता का भाव ही मार्दव धर्म है।
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