लाॅकडाउन लगने के बाद आज तक जिले में करीब 300 लाेग सुसाइड कर चुके हैं। भास्कर अपने पाठकाें काे यही निगेटिव खबर बता रहा है, लेकिन कुछ परिवाराें के जज्बे काे सामने लाते हुए संकट में हाैसला बनाने का संदेश देना चाह रहा है। काेराेना के कारण लगाए गए लॉकडाउन में सब कुछ बंद होने की वजह से सुसाइड के मामले अचानक बढ़ गए।
एमबीएस अस्पताल के रजिस्टर और थानों में आने वाले केसों से लगाए गए अनुमान के अनुसार 25 मार्च से शुरू हुए लॉकडाउन से लेकर अब तक काेटा जिले में 300 से अधिक लोग आत्महत्या कर चुके हैं। ऐसे माहौल और इन खबरों के बीच दैनिक भास्कर ने ऐसे मामलाें से प्रभावित परिवाराें के जज्बे से सकारात्मकता तलाशने का प्रयास किया है।
इस स्पेशल रिपोर्ट में पढ़ें तीन परिवाराें की कहानी : वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे आज
हर साल 10 सितंबर को वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे मनाया जाता है। इसे मनाने का मकसद आत्महत्या के विरुद्ध जागरूकता फैलाना है। इस दिवस मनाने के जरिये आत्महत्या की प्रवृत्ति को रोकने का संदेश दिया जाता है। वैसे तो आत्महत्या के कई कारण होते हैं, लेकिन अवसाद को इसका मुख्य कारण बताया जाता है।
विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस वर्ष 2003 से मनाया जा रहा है। इसकी शुरुआत इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ सुसाइड प्रिवेंशन ने की थी। इसके अायाेजन से विश्व स्वास्थ्य संगठन और मानसिक स्वास्थ्य फैडरेशन भी जुड़े हुए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े बताते हैं कि हर 40 सैकंड में दुनिया में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है। हर साल 8 लाख से ज्यादा लोग सुसाइड कर लेते हैं।
केस-1 : 17 साल के हसन की बुलंद साेच-पढ़ाई ताे बाद में कर लूंगा, अभी संभालना है परिवार
किस उम्र तक पढ़ा जाए, किस उम्र से कमाया जाए.... यह शौक नहीं हालात तय करते हैं। हसन अली (17) और हसरत अली (12) की उम्र पढ़ने अाैर खेलने की है, लेकिन हालातों ने इन मासूम कंधों पर परिवार पालने की जिम्मेदारी डाल दी है। इनके पिता फल विक्रेता बशीर मोहम्मद (40) ने 18 जून को घर पर ही फांसी लगाकर सुसाइड कर लिया था। मार्च, अप्रैल और मई से बशीर बेरोजगार थे।
काम जैसे-तैसे शुरू हुआ तो जहां वो ठेला लगाते थे, वो जगह उनसे छिन गई क्योंकि वहां अनंतपुरा फ्लाईओवर ब्रिज बनना है। ऐसे हालात में बशीर ने मौत को गले लगाने का आसान विकल्प चुना। पिता के इंतकाल के बाद बड़े बेटे हसन पर मां, छोटे भाई हसरत और बहन (8) की जिम्मेदारी आ गई।
मां ने घर संभाला और बेटे ने पिता की फलों के ठेले की वसीयत को। बकौल, हसन मैं 10वीं का एग्जाम नहीं दे पाया और मुझे पढ़ाई छोड़नी पड़ी। मेरे लिए अब परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना पढ़ाई से ज्यादा जरूरी है। एक बार घर संभल जाए, तो फिर से किताबों से दोस्ती कर लूंगा।
केस-2 : पति ने जान दी, ताे संभाली परिवार की बागडाेर, बेटी का ऑपरेशन भी करवाया
छावनी के मुकेश पुत्र नंदलाल मीणा ने 16 जून को स्टील ब्रिज के पास ट्रेन के आगे आकर सुसाइड कर लिया था। उनकी बेटी पिंकी काे पीलिया व पथरी जैसी बीमारियां थीं और वे आर्थिक तंगी के कारण उसका इलाज नहीं करा पा रहे थे। लॉकडाउन के चलते वे कुछ महीनाें से बेरोजगार थे। ड्राइवर का काम करते थे, जो पूरी तरह से बंद हाे गया था। घर चलाने के लिए सब्जी बेचना शुरू किया, लेकिन वो भी नहीं चल पाया।
वे छावनी में जहां रह रहे थे, उससे कुछ दूरी पर ही कोरोना मरीज आया था, ऐसे में वहां कर्फ्यू लगा दिया गया था। इन सब हालाताें से मुकेश टूट गए और उन्हाेंने आत्महत्या कर ली। उनकी मौत के बाद पत्नी संतरा ने पूरे परिवार की बागडाेर संभाली। वो तीन बच्चों को लेकर पीहर चली गई और वहां पिता व परिजनों की मदद से फिर से खड़े होने का प्रयास कर रही हैं।
पति को भुलाना असंभव है, लेकिन बच्चों के भविष्य काे देखते हुए वे परिवार संभालने में जुटी हैं। उन्हाेंने परिजनों की मदद से बेटी का ऑपरेशन भी करवा लिया है।
केस-3: बड़े भाई की मौत से घबराया नहीं, शाॅप पर काम ढूंढा ताकि घर खर्च चलता रहे
बजरंग नगर थर्मल गेट नंबर 4 के सामने रहने वाले 24 वर्षीय महेश वैष्णव पुत्र रमेश ने 10 अगस्त को घर पर ही फांसी का फंदा लगाकर जान दे दी थी। महेश का परिवार काफी गरीब है। उनके मकान पर छत की जगह टीन शेड लगे हुए हैं। लॉकडाउन की वजह से वो कई महीनों से बेरोजगार था।
कहीं पर भी काम नहीं मिलने की वजह से कुछ दिनों से तनाव में था और आखिर उसने सुसाइड कर लिया। बड़े भाई की मौत के बाद परिवार की जिम्मेदारी सूरज पर आ गई। बकौल सूरज-मार्च से पहले तक सब बढ़िया चल रहा था, लेकिन लॉकडाउन के बाद से महेश को काम नहीं मिला था।
अब मैं बैग की एक शॉप पर नौकरी करने लगा हूं और वहां से मिलने वाली पगार से परिवार को फिर से खड़ा करने की पुरजोर कोशिश कर रहा हूं। भाई की मौत के बाद एकबारगी तो हम सभी सदमे में आ गए थे, लेकिन फिर सोचा कि मैंने हिम्मत नहीं रखी, तो परिवार को कैसे संभालूंगा। इसी कारण मैं घबराया नहीं और मैंने नौकरी शुरू कर दी।
भास्कर नॉलेज : 2019 में भारत में रोज 381 लोगों ने आत्महत्या की, 5.8% है प्रदेश की सुसाइड रेट
देश में पिछले साल रोजाना औसतन 381 लोगों ने सुसाइड किया था। पूरे साल में करीब 1.39 लाख मौतें सुसाइड की वजह से हुईं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 और 2018 की तुलना में पिछले साल सुसाइड की घटनाओं में 3.4% की बढ़ोतरी दर्ज की गई। 2017 में 1.29 लाख व 2018 में 1.34 लाख सुसाइड रिकॉर्ड किए गए थे। राजस्थान की सुसाइड रेट 5.8 हैं, जो दूसरे राज्यों से कम है।
2015 से 2019 के दौरान देश में आत्महत्याओं की संख्या और सुसाइड की दर
वर्ष सुसाइड सुसाइड रेट
2015 1,33,623 10.6%
2016 1,31,008 10.3%
2017 1,29,887 09.9%
2018 1,34,516 10.2%
2019 1,39,123 10.4%
एक्सपर्ट : नौकरी छूटना, कारोबार में घाटा, आर्थिक संकट सुसाइड की बड़ी वजह
जिले में रोज दो सुसाइड हो रहे हैं। इनकी तीन प्रमुख वजह हैं-नौकरी छूटना, कारोबार में घाटा और आर्थिक संकट। वहीं, प्रेम प्रसंग, पारिवारिक विवाद, चरित्र पर संदेह, बीमारी, विवाद, दहेज, घरेलू हिंसा, पढ़ाई का दबाव भी सुसाइड के कारण बनकर उभरे हैं।
इन दिनाें कोरोना का भय भी बहुत है। इसमें अब धीरे-धीरे कमी आ रही है, लेकिन शुरुआती दौर में यह प्रमुख कारण बन गया था। हमारी होप संस्था के पास रोज 4 से 5 कॉल आ रहे हैं। यदि काेई व्यक्ति अचानक चुप रहने लगे, अनमना दिखे या उसे अकेला रहना पसंद हाे ताे फाैरन ध्यान देना चाहिए।
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