प्रदेश भर में देरी से सक्रिय होकर समय पहले मानसून की वापसी के बीच इस बार रबी सीजन की बारानी फसलों का बुआई रकबा कम होगा। मौसम रिपोर्ट के मुताबिक मानसून जुलाई के बजाय अगस्त में सक्रिय हुआ तथा सितंबर के पहले सप्ताह में ही सिमट गया। जबकि मौसम कैलेंडर के मुताबिक मानसून सीजन 15 सितंबर तक माना जाता है।
मौसम विशेषज्ञों का दूसरा तर्क यह है कि देरी से सक्रिय हुआ मानसून देरी तक बारिश करवाता है। मौसम के बदलते हालातों के बीच इस बार खरीफ की फसलें 15 दिन देरी बुवाई की गई तथा देरी से ही से तैयार हुई है। दूसरी तरफ जिले में समय पर खेत खाली नहीं होने एवं मानसून की जल्दी वापसी की स्थिति में रबी की बुवाई में भी 15 दिन की देरी के साथ ही बारानी फसलों का 26000 हेक्टेयर रकबा घट रहा है ।
सबसे ज्यादा 14000 हेक्टेयर चना का बारानी रकबा तथा 12000 हेक्टेयर तारामीरा का बुवाई रकबा प्रभावित हो रहा है। संयुक्त निदेशक कृषि प्रमोद कुमार के मुताबिक समय पर खेत खाली नहीं होने तथा जमीन सूखने की स्थिति में रबी की बुवाई में देरी के साथ ही तारामीरा तथा चना आदि फसलों का बुवाई रकबा कम हो रहा है।
2 साल की बुआई रिपोर्ट
वर्ष, चना तारामीरा
2019 64000 50000
2020 22000 12000
15 सितंबर से 15 नवंबर तक होती है रबी की बुआई
रबी फसलों की बुवाई के लिए 15 सितंबर से 15 नवंबर तक का अनुकूल समय माना जाता है। 15 अक्टूबर तक तारामीरा एवं चने की बुवाई के लिए तथा अक्टूबर के अंतिम पखवाड़े से 15 नवंबर तक गेहूं की बुवाई के लिए अनुकूल समय रहता है। इस साल मानसून की जल्दी वापसी होने की वजह से जिले में रबी सीजन की बारानी फसलों की बुवाई नहीं हो पा रही है।
बुआई में देरी से नहीं मिल पाता अनुकूल मौसम
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार बुआई में देरी होने से फसलों को अनुकूल मौसम नहीं मिल पाता है। क्योंकि अक्टूबर से जनवरी तक शीतकाल माना गया है। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है सर्द मौसम में ही रबी फसलों की बढ़वार होती है। देरी से बुवाई होने की स्थिति में फसलों के अनुकूल मौसम नहीं बन पाता है। ऐसी स्थिति में फसलंे कमजोर रह जाती है।
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