देश में प्रत्येक 1500 लोगों पर एक डॉक्टर है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक प्रति 1,000 व्यक्ति पर एक डॉक्टर की जरूरत है। कोविड-19 ने देश में चिकित्सकों की कमी के संकट को और गहरा दिया है। ऐसे में महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान समेत कई राज्यों ने कोविड-19 में मेडिकल स्टूडेंट्स की ड्यूटी लगाई है। इस मुद्दे पर देश भर में बहस भी छिड़ी है।
कई शहरों में इसका विरोध हुआ है लेकिन अधिकांश मेडिकल प्रोफेशनल्स इस कदम को उचित ठहरा रहे हैं। विरोध और समर्थन से पहले यह जानना भी जरूरी है कि क्या वाकई हमारी मेडिकल शिक्षा छात्रों को इस तरह तैयार कर रही है जो इस काम में मददगार हो सकते हैं। भास्कर ने इस संबंध में देश भर के कई मेडिकल अधिकारियों से बात की जिसमें ऐसे सवालों के जवाब सामने आए।
निमहांस, बेंगलुरु में डीन ऑफ फैकल्टी न्यूरोसाइंसेस, डॉ. बी इंदिरा देवी के अनुसार, महाराष्ट्र का मेडिकल स्टूडेंट्स को रिक्रूट करने का मॉडल सही है क्यों कि यह उन्हें मरीजों के मैनेजमेंट की प्रैक्टिकल ट्रेनिंग दे रहा है। युद्ध में कभी-कभी मोर्चा नए सैनिकों को संभालना पड़ता है जिनके पास बहुत कम प्रशिक्षण होता है। मेडिकल स्टूडेंट्स के लिए भी यह ऐसा ही मौका है लेकिन यह काम उन्हें एसओपी व गाइडलाइन के साथ करना चाहिए।
- डॉक्टर्स की कमी के कारण इंटर्न्स की कोविड में ड्यूटी लगाई गई है। ड्यूटी के समय सीनियर रेजीडेंट डॉक्टर्स भी हमारे साथ रहते हैं। - डॉ. नितिन आमेरिया, वीपी, ऑल राजस्थान इंटर्न डॉक्टर एसोसिएशन
- इस विषय के बेहतर कवरेज के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट ने विशेषज्ञों के साथ मिलकर यूजी के लिए कॅरिकुलम तैयार किया है जिसे यूजीसी व एनएमसी से स्वीकृति मिलनी बाकी है। - प्रो. अनिल के गुप्ता, एनआईडीएम
5 टॉप मेडिकल संस्थानों की फैकल्टीज व अधिकारियों ने इन 5 सवालों के जवाबों में समझाया कि क्यों कोविड एक लर्निंग है
क्या सिलेबस का फॉर्मेट सही है?
- सिलेबस का फॉर्मेट सही है। लेकिन हर विषय के अनुसार सिलेबस में नए मुद्दों को जोड़ने की गुंजाइश हमेशा रहती है। एपिडेमिक से जुड़ी बीमारियां कॅरिकुलम का हिस्सा हैं लेकिन प्रैक्टिकल कॉम्पोनेंट्स विषय की मांग के अनुसार नहीं हैं। यूजी लेवल पर एपिडेमिक इन्वेस्टिगेशन में छात्रों की सीधी भागीदारी नहीं है। यह सीखने का अच्छा मौका है। - डॉ. जुगल किशोर, एचओडी, कम्यूनिटी मेडिसिन, वीएमएमसी एंड सफदरजंग हॉस्पिटल, दिल्ली
कॅरिकुलम अपग्रेड होना चाहिए?
- पिछले वर्ष सिलेबस में संबंधित चीजें जोड़ी गई हैं लेकिन मार्च के बाद कॉलेज ही नहीं खुले हैं। नया कॅरिकुलम कॉम्पीटेंसी बेस्ड और काफी पैक्ड है। उसमें सब कुछ है। हालांकि ऐसे क्राइसिस के लिए स्टूडेंट्स की इतनी ट्रेनिंग नहीं होती। इसलिए पेपर वर्क तक ही उन्हें सीमित रखना चाहिए। - डॉ. सबिता मिश्रा, एचओडी, एनाटमी विभाग, एमएएमसी, नई दिल्ली
विदेशी शिक्षा से तुलना संभव है?
- अमेरिका में 12वीं के बाद एक स्टूडेंट को बायोलॉजी व मानवीय मूल्यों को समझने में 4 साल देने होते हैं। इसके बाद ही वह 4 वर्षीय एमबीबीएस में प्रवेश करता है। जोकि 4 साल का होता है। उन्हें यूएसएमएलई भी क्लीयर करना होता है। इसके बिना वे मरीज को छू भी नहीं सकते। हमारा एजुकेशन सिस्टम कई गुना बेहतर है। - डॉ. कुलदीप सिंह, डीन एकेडमिक्स, एम्स जोधपुर
सरकार कौनसे कदम उठाए?
- एनएमसी यह सुनिश्चित करे कि अस्पताल अच्छे हों, हमारे पास अच्छी क्वालिटी के पर्याप्त टीचर्स हों। छात्रों का ईवैल्यूएशन कैसे हो रहा है इस पर भी ध्यान देना होगा। मेडिकल कॉलेज के मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ उससे जुड़े हॉस्पिटल की स्थिति बेहतर होनी चाहिए। सरकारी रेग्युलेटरी को यह चेक करना चाहिए। - डॉ. अन्ना बी पुलिमूड, प्रिंसिपल, सीएमसी, वेल्लौर
छात्रों की ड्यूटी लगाना गलत है?
मेडिकल स्टूडेंट्स को इस काम में लगाने में कोई दिक्कत नहीं है। यह उनकी ट्रेनिंग का हिस्सा है। जब परिस्थितियां असाधारण होती हैं तो उनके समाधान भी असाधारण होते हैं। फाइनल ईयर छात्र जिनकी क्लीनिकल पोस्टिंग्स हो गई हैं उनसे यह काम करवाया जा सकता है। जूनियर मॉनिटरिंग कर सकते हैं। - डॉ. एम.सी मिश्रा, पूर्व डायरेक्टर, एम्स दिल्ली
38,000 पीजी
70,000 एमबीबीएस
स्टूडेंट्स ग्रेजुएट होेते हैं देश में हर साल
1300-1400 इंटर्न कोरोना में ड्यूटी दे रहे हैं राजस्थान में
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today