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शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

कांग्रेस के लिए दक्षिण का दांव आसान नहीं उत्तर में मुस्लिम उप महापौर नहीं दिया ताे खिसक ना जाए खुद के पार्षद

(भंवर जांगिड़) उत्तर में कांग्रेस का सीधा महापौर बन रहा है और भाजपा की चुनौती औपचारिक है। दक्षिण में कांग्रेस निर्दलीय पार्षदों की हॉर्स ट्रेडिंग के साथ भाजपा में भी सेंध लगाने का भरसक प्रयास कर रही है, लेकिन दक्षिण का यह दांव इतना आसान नहीं है। इधर, कांग्रेस के खुद के घर में बवाल मचा है, उत्तर में कुंती परिहार (देवड़ा) काे महापौर प्रत्याशी बना कर वर्षाें से शहर अध्यक्ष रहे सईद अंसारी को काेप भवन में भेज दिया है।

उत्तर में कांग्रेस के पास 23 मुस्लिम पार्षद हैं तो दक्षिण में भी पांच हैं। अब महापौर का टिकट कटने पर मुस्लिम उत्तर में उपमहापौर की दावेदारी मजबूती से ठोंक रहे हैं या यूं कहें कि पार्टी को मजबूर कर रहे हैं। जिस तरह कांग्रेस दक्षिण में भाजपा के पांच पार्षदाें से क्रॉस वोटिंग करवाने के प्रयास में हैं, लेकिन उत्तर में उप महापौर पद नहीं देने पर दक्षिण के पांचों मुस्लिम पार्षदों को बांध पाना मुश्किल हो जाएगा।

यदि ये भी अंसारी के कोप भवन में जा बैठे तो भाजपा का बनता बोर्ड बिगाड़ना तो दूर खुद कांग्रेस की फजीहत हाे सकती है। कुल-मिलाकर शहर में साफ तौर पर एक-एक बोर्ड दोनों दलों का बन रहा है, कांग्रेस का दोनों बोर्ड पर कब्जा करने का सपना तभी पूरा हो सकता है, जब मुस्लिम का प्रतिनिधत्व तय करे और साथ में भाजपा के पार्षद भी टूट जाए। हालांकि इंद्रा राजपुरोहित को महापौर नहीं बनाने से उनका समाज नाराज है, लेकिन उनके पास समाज के दूसरे पार्षद नहीं हैं और इंद्रा भी पार्टी के खिलाफ जाएगी, यह असंभव है।

इन 5 बातों से जानेंः दक्षिण में कांग्रेस का बोर्ड बनाने का सपना कैसे मुश्किल है?

1. भाजपा के दो बागी
वार्ड-14 से फतेहराज सुथार और वार्ड-36 से दीपक माथुर जीते हैं। ये दोनों भाजपा के बागी हैं, लेकिन जीत के बाद पार्टी ने संपर्क सूत्र में बांध लिया है। उधर, उनसे संपर्क कांग्रेस भी कर रही है और अच्छी कमेटी का प्रलोभन दे रही है, लेकिन यह तो भाजपा के हाथ की ही बात है।

2. अंसारी की नाराजगी
अंसारी पार्टी के मजबूत और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के भरोसे के नेता हैं। उन्होंने हार के लिए सूरसागर से चुनाव भी लड़े हैं। पहली बार अपनी बेटी को महापौर बनाने की मांग की थी, लेकिन पूरी नहीं हुई। इसलिए वे तो नाराज हैं ही मुस्लिम पार्षद भी खुश नहीं हैं।

3. उप महापौर का दावा
उत्तर में महापौर की कुर्सी हाथ में है, लेकिन उप महापौर के लिए खींचतान है। वजह 27 मुस्लिम पार्षद। सर्वाधिक पार्षद होने से उत्तर में महापौर की कुर्बानी के बदले उप महापौर की कुर्सी चाहते हैे। नहीं दी तो दोनों जगह खेल बिगड़ने का खतरा पैदा हो सकता है।

4. निर्दलीय का नामांकन
दक्षिण में अपना महापौर बनाने का जुगाड़ बैठा रहे कांग्रेसी नेताओं को एक झटका तो निर्दलीय हेमलता परिहार के नामांकन भरने से लग गया है। उसके पास अन्य पांचों बागी पार्षद जुट भी जाएं तब भी आंकड़ा 34 तक पहुंचा है, जो बहुमत से सात कम है। पहले हेमलता को कमेटी का प्रलोभन देकर मनाना पड़ेगा।

5. भाजपा पार्षदों पर डोरे
दक्षिण में भाजपा के 43 पार्षद हैं और सभी भाजपा के खेमे में बैठे हैं। रामस्वरूप व पायल निजी काम होने से दूसरे भाजपा पार्षदों के साथ नहीं जा पाए थे, इसलिए कांग्रेसी उनके संपर्क साध रहे थे, लेकिन अब वे भी बाड़ाबंदी में पहुंच चुके हैं। भाजपा खेमे में से पांच पार्षदों को तोड़ पाना कांग्रेस के लिए इतना आसान नहीं है।

...इधर, भाजपा की भी कांग्रेस की गुटबाजी पर पूरी नजर
कांग्रेस भले ही दक्षिण में अपना महापाैर बनाने के प्रयास में है, लेकिन भाजपा अपना महापौर बनने में कोई खतरा नहीं मानती है। उल्टा वह कांग्रेस की गुटबाजी में अवसर तलाश रही है और दावा कर रही है कि महापौर के पक्ष में 43 भाजपा पार्षदों के साथ दाे बागियों और कांग्रेस के 2-3 पार्षद वोटिंग कर सकते हैं।

सामने उतरना स्वस्थ परंपरा का हिस्सा
उत्तर में कांग्रेस के 53 पार्षद हैं, इसलिए महापौर बनने में दिक्कत नहीं है। फिर भी भाजपा ने उम्मीदवार उतारा। कांग्रेस का कहना है कि जब भाजपा 19 पार्षदों से चुनौती दे रही है तो दक्षिण में हमारे पास 29 पार्षद हैं, इसलिए पूजा को उतारा है। यह चुनाव लड़ने की स्वस्थ परंपरा है।



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