जयपुर. फाल्गुन माह के शुक्लपक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी कहा जाता है। इसे रंगभरी एकादशी भी कहते हैं। हिंदू पंचांग की यह आखिरी शुक्ल पक्ष एकादशी होती है। पंचांग भेद के कारण इस बार दो दिन एकादशी मनाई जा रही है। कुछ पंचांगों में आमलकी एकादशी 24 मार्च को दर्शाई गई तो उदया तिथि होने के कारण 25 तारीख को भी यह एकादशी बताई गई है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार उदया तिथि पर ही एकादशी व्रत और पूजा श्रेष्ठ है। ज्योतिषाचार्य पंडित सोमेश परसाई बताते हैं कि आमलकी एकादशी का व्रत रखनेवाले को भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। आमलकी एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना के साथ ही आंवले की भी पूजा की जाती है। आमलकी का अर्थ ही होता है आंवला। इस दिन आंवला की पूजा कर परिक्रमा की जाती है।
मान्यता है कि इसी दिन लक्ष्मीजी के आंसू से आंवला पेड़ की उत्पत्ति हुई थी। आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना कर आंवले के पेड़ की पूजा करने, इसका सेवन करने, दान देने और इसके पौधे रोपने का विधान है। भगवान विष्णु ने ही आंवले को आदि वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित किया था। पद्म पुराण में कहा है कि आमलकी एकादशी पर आंवला और विष्णुजी की पूजा से मोक्ष मिलता है।
आंवले की पूजा से तीन मुख्य देवों की पूजा हो जाती है क्योंकि आंवले के पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास माना गया है। आंवले के ऊपरी भाग में ब्रह्माजी, मध्य में शिव और जड़ में भगवान विष्णु निवास करते हैं। पंचांग के अनुसार 24 मार्च की सुबह 10 बजकर 23 मिनट से एकादशी तिथि लग गई थी जोकि 25 मार्च की सुबह 09 बजकर 47 मिनट तक रहेगी।
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