मदनगंज : एशिया की सबसे बड़ी किशनगढ़ मार्बल मंडी शुरू होने के बावजूद उसका हाल खराब ही है। मार्बल उद्योग अब तक खड़ा नहीं हो पाया है। इसकी मुख्य वजह मार्बल की मांग नहीं होना और मजदूरों का टोटा है। वर्तमान में सरकार की गाइडलाइन की पालना करते हुए 65 फीसदी मार्बल गैंगसा संचालित हो रही है और 35 फीसदी यूनिटें बंद पड़ी है। मार्बल एरिया में 339 में से 118 यूनिटें अब भी बंद पड़ी है। संचालित यूनिटों में भी खानापूर्ति के हिसाब से काम चल रहा है। यानि आज भी प्रतिदिन करोड़ों का नुकसान मंडी झेल रही है।
मार्बल का उठाव ऑनलाइन ऑर्डर पर हो रहा है। उसकी संख्या भी कम है। साथ ही मार्बल की क्वालिटी और इफेक्टिव माल की तुलना में ग्रेनाइट की मांग अधिक होने से भी मार्बल की चमक फीकी पड़ी है। मालूम हो कि लॉकडाउन से अब तक मार्बल मंडी में कारोबार बंद होने की वजह से तीन अरब रुपए का नुकसान हो चुका है।
लॉकडाउन में ढील के साथ ही प्रशासन की अनुमति और सरकार की गाइडलाइन की पालना करते हुए मार्बल मंडी में यूनिटों का संचालन शुरू कर दिया गया। धीरे-धीरे यूनिटें खुलने लगी। मार्बल एरिया में 50 दिन बाद कामकाज शुरू हुआ। एरिया में 339 मार्बल गैंगसा में से करीब 221 यूनिटों का संचालन हो रहा है। यूनिट बंद होने की वजह से प्रतिदिन करोड़ों रुपए का नुकसान हो रहा है।
सिर्फ ऑनलाइन ऑर्डर पर ही बिक रहा है मार्बल
जानकारों का कहना है कि मार्बल एरिया में वर्तमान में लोडिंग शुरू हुई है। लेकिन यह लोडिंग भी जिले और दूसरे राज्यों में जा रही है। मार्बल की खरीदारी ऑनलाइन की जा रही है। इसमें कुछ लॉक डाउन से पहले के तो कुछ बाद के ऑर्डर आ रहे हैं। प्रतिदिन औसत 150 गाड़ियां लोड हो रही है। लेकिन स्थानीय ऑर्डर बहुत कम आ रहे हैं।
मार्बल का उठाव नहीं हाेने की यह है मुख्य वजह
मार्बल का उठाव नहीं होने की वजह उसकी वेरायटी है। मार्बल को फोन या ऑनलाइन वेबसाइट पर देखकर पसंद नहीं किया जा सकता। क्योंकि इसमें कई तरह के वेरिएशन, स्क्रेच और डिफेक्टिव माल निकलने की संभावना ज्यादा रहती है। इसलिए व्यापारी को मार्बल खरीदने के लिए मार्बल मंडी में आना ही होगा। लॉकडाउन के समय में मार्बल व्यापारी मंडी में नहीं आ रहे हैं। छूट के बावजूद लोग मकान बनाने, मार्बल खरीदने में ज्यादा रूचि नहीं दिखा रहे। इसी कारण मार्बल का उठाव नहीं हुआ है।
22 मार्च से मार्बल एरिया में यूनिटें बंद हो गई थी। लगातार 45 से ज्यादा दिन बंद रहने की वजह से अब तक करीब तीन अरब रुपए का नुकसान हो चुका है। इससे पूरी तरह व्यापार प्रभावित हो रहा है। जबकि पूर्व में इस औद्योगिक क्षेत्र में प्रतिदिन 11 करोड़ रुपए का प्रतिदिन टर्नओवर होता था। जबकि अब तीन से पांच करोड़ ही रह गया है। प्रतिदिन यहां मार्बल और ग्रेनाइट के करीब 300 वाहनों की लोडिंग होती थी और अब 150 ही हो रहे हैं। प्रतिदिन यहां मार्बल और ग्रेनाइट के करीब 300 वाहनों की लोडिंग होती थी। प्रतिवर्ष एक लाख 8 हजार वाहन लोड होते हैं। कुल मिलाकर यहां का मार्बल 25 हजार से ज्यादा मजदूरों को रोजगार देता है।
^वर्तमान में करीब 65 फीसदी मार्बल यूनिटें ही चालू हुई है। अब भी 35 फीसदी यूनिटें बंद है। इससे प्रतिदिन नुकसान हो रहा है। मार्बल की बिक्री कम हो रही है। ग्रेनाइट की बिक्री ज्यादा है। मजदूरों के चले जाने की वजह से भी प्रभाव पड़ा है। इस उद्योग को खड़ा होने में काफी समय लगेगा।
सुधीर जैन, अध्यक्ष, किशनगढ़ मार्बल एसोसिएशन किशनगढ़