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शनिवार, 30 मई 2020

कोरोना से युद्ध में वॉररूम बना एसएमएस; पहले रैपिड रेस्पांस टीम का हिस्सा बनकर मरीज खोजे, फिर सबसे पहले दवा का फॉर्मूला ढूंढा

कोरोना से युद्ध में वॉररूम बना एसएमएस; पहले रैपिड रेस्पांस टीम का हिस्सा बनकर मरीज खोजे, फिर सबसे पहले दवा का फॉर्मूला ढूंढा










जयपुर : जयपुर के एसएमएस हॉस्पिटल में 2 मार्च को जब इटली का एक नागरिक कोरोना संक्रमित मिला, तो हममें से किसी को भी ये अंदाजा नहीं था कि राजस्थान में मरीजों का आंकड़ा 8 हजार से ज्यादा होने के बाद भी नहीं थमेगा। कोरोना के इस रण में रणभूमि और रणनीति तो नई थी ही, लड़ने के हथियार भी नए बनाने थे। और इसकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी हम डॉक्टर्स पर थी, क्योंकि इस जंग के फ्रंटलाइन वॉरियर्स हम ही थे। हमने कई ट्रायल किए और दवा का एक कांबिनेशन तैयार किया। मलेरिया, स्वाइन फ्लू और एचआईवी की दवाओं का फॉर्मूला बनाकर मरीजों को देना शुरू किया। मरीजों की हालत में सुधार होने लगा। उस वक्त तक पूरे देश में कहीं भी कोरोना मरीजों के इलाज का कोई सटीक उपचार नहीं था, इसलिए आईसीएमआर ने एसएमएस के डॉक्टरों द्वारा तैयार ये कांबिनेशन सभी डॉक्टरों से इस्तेमाल करने के लिए कहा। इस जंग में ये हमारी पहली जीत थी। आज एसएमएस देश के लिए एक रोल मॉडल बन चुका है।
अब सबसे बड़ी चुनौती थी इस महामारी के संक्रमण पर काबू पाना। इसके लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के निर्देश पर तत्काल रैपिड रेस्पांस टीम का गठन किया गया। इसमें एसएमएस के पीएसएम विभाग, माइक्रोबायोलॉजी, मेडिसिन, शिशु रोग विभाग और ईएनटी विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक भी सदस्य बनाए गए। इसका बड़ा फायदा ये हुआ कि कई हॉटस्पॉट और क्लस्टर समय रहते चिह्नित कर लिए गए। मरीजों की जल्दी पहचान में मदद मिली। इसी टीम की बदौलत भीलवाड़ा व झुंझुनूं में कम्युनिटी स्प्रेड रोकने में सफल हुए। इसके बाद हमारे सामने एक नई चुनौती खड़ी हो गई। पीपीई किट के कवच में 14-16 घंटों तक कैद रहने के बावजूद यह संक्रमण वॉरियर्स को भी चपेट में लेने लगा। इसे देखते हुए प्रदेश में पहली बार एसएमएस में दवा देने के लिए रोबोट का इस्तेमाल शुरू किया गया।
इस बीच मरीजों की लगातार बढ़ती संख्या को देखते हुए जांचों की रफ्तार बढ़ाना बेहद जरूरी हो गया था। सीएम अशोक गहलोत की पहल का ही नतीजा था कि प्रदेश में सबसे पहले रैपिड किट का इस्तेमाल शुरू हुआ। इससे सटीक नतीजे नहीं मिलने पर राज्य सरकार ने सबसे पहले आपत्ति भी उठाई। नतीजतन पूरे देश में रैपिड किट से जांच रोक दी गई। चूंकि पीसीआर से जांच ही सबसे भरोसेमंद साबित हुई थी, इसलिए एसएमएस में पीसीआर से रोज 100 जांचों से शुरुआत करके अब प्रतिदिन करीब तीन हजार जांचें की जा रही हैं।
प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल करके मरीजों को ठीक करने के मामले में भी एसएमएस प्रदेश का सबसे पहला अस्पताल था। केंद्र से इसकी मंजूरी मिलने के 7 दिन पहले से ही हमने दिन-रात मेहनत करके ये थेरेपी इस्तेमाल करने की पूरी तैयारी कर ली थी। जैसे ही मंजूरी मिली तो हमने इलाज शुरू कर दिया। इस थेरेपी से अब तक दो गंभीर मरीजों को ठीक करके डिस्चार्ज भी किया जा चुका है। एसएमएस में अब तक कुल 1100 मरीज भर्ती हो चुके हैं, जिनमें 900 को ठीक करके डिस्चार्ज किया जा चुका है। 86 अभी भर्ती हैं।
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  1. रैपिड रेस्पांस टीम: सबसे संक्रमित क्षेत्रों में जांच करके रैंडम सैंपलिंग के जरिए मरीज खोजे ताकि संक्रमण काबू रहे।
  2. दवा का फॉर्मूला: मलेरिया, स्वाइन फ्लू व एचआईवी की दवाओं से सबसे पहले एसएमएस ने ही कोरोना रोगी ठीक किए।
  3. रोबोट का उपयोग डॉक्टर संक्रमित न हो, इसलिए प्रदेश में सबसे पहले रोबोट की मदद से दवा बांटने का काम शुरू किया गया।
  4. पीसीआर से जांच: रैपिड किट से जांच फेल होने के बाद पीसीआर से रोजाना 3 हजार तक जांचें करके मरीज खोजे जा रहे हैं।
  5. प्लाज्मा थेरेपी से इलाज : प्लाज्मा थेरेपी के जरिए गंभीर मरीजों का इलाज किया गया। अभी तक दो डिस्चार्ज भी हो चुके हैं।