साहवा/चूर, भीषण गर्मी में प्यास बुझाने से जुड़ी संघर्ष की ये तस्वीर हर साल यूं ही बनती है। पिछले साल भी यही जगह थी और पानी जुटाने के लिए ऐसे ही संघर्ष करती बालिका की तस्वीर सामने आई थी। गांव-ढाणियों में पानी के लिए संघर्ष कर एक मटकी पानी का जुगाड़ करने वाले ग्रामीण साफ शब्दों में बस इतना ही कहते हैं हमारे साल के 365 दिन पानी की तलाश में निकल जाते हैं। सुबह आंखे खुलती हैं, तो सबसे पहले जहन में यही आता है कि आज पानी कहां मिलेगा? फिर बर्तन लेकर निकल जाते हैं पानी की तलाश में।
रिसाव-लीकेज से टपकने वाली बूंदों को भी अमृत मानते हैं। घंटों संघर्ष और मेहनत कर प्यास बुझाने का ये सिलसिला सालों से है। बता दें कि पानी संकट का ये दृश्य तारानगर रोड स्थित गांव धीरवास बड़ा के आस-पास की ढाणियों का है। यहां सुबह से शाम तक पानी के लिए दिनभर ऐसे ही महिलाओं व बालिकाओं के संघर्ष की तस्वीरे बनती है। सरकार और जनप्रतिनिधियों के दावे और घोषणाएं इन प्यासे ग्रामीणों के लिए सिर्फ दिखावा और झूठ है। गांव के एक मोहल्ले व 30 घरों की ढाणियों के करीब 450 लोगों के लिए पानी की कोई व्यवस्था नहीं है।
पास ही धीरवास बड़ा गांव में घर-घर पेयजल कनेक्शन मिले हुए हैं, लेकिन घरों तक पानी कब पहुंचेगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
सरपंच रूकमा देवी भांभू ने बताया कि जलदाय विभाग ने धीरवास सड़क तक घर-घर कनेक्शन योजना की लाइन डाली। ढाणियों व मोहल्ले में भी लाइन डाली जानी थी, मगर बजट खत्म हो गया। इन परिवारों के घर तक पानी पहुंचाने के लिए मात्र 500 मीटर लाइन डालने की आवश्यकता है।
एक किमी पैदल चलना, आधा घंटा मेहनत, फिर मिलता एक मटकी पानी
महिलाएं व बालिकाएं रोज एक किमी का सफर कर पेयजल लाइन के एयरवॉल चेंबर के पास पहुंचती हैं। एयरवॉल चेंबर में पेयजल लाइन के रिसाव से पानी जमा होता रहता है। महिलाएं व लड़कियां डिब्बे की सहायता से पानी को मटकी में भरती है और फिर घर पहुंचती है। ऐसे रोज 10 से 12 चक्कर लगाने पड़ते है। ऐसे में एक मटकी पानी के लिए भी महिलाओं को करीब आधा घंटा व प्रतिदिन के पानी की व्यवस्था के लिए छह घंटे मेहनत करनी पड़ती है।