घंटियाली (जोधपुर).ये हैं बुद्धनगर के रहने वाले 28 वर्षीय फरसाराम विश्नोई। विश्नोई मूक बधिर है लेकिन प्रकृति के प्रति संवेदनशील इतने कि उसकी भाषा बखूबी समझ रहे हैं। हर साल पांच पौधे लगाकर उनकी देखभाल कर रहे हैं और क्षेत्र में श्वानों के हमले में घायल होने वाले वन्यजीवों का उपचार खुद ही कर देते हैं।
गंभीर घायलों को अपने खर्चे पर रेस्क्यू सेंटर भिजवा रहे हैं। मूक बधिर होते हुए भी प्रकृति के प्रति अपना फर्ज निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। उन्होंने मोबाइल पर मैसेज के जरिए बताया कि उसे बचपन से प्रकृति और वन्यजीवों से लगाव है। वे गुरु जंभेश्वर के जीव दया पालणी और रूंख लीलो नहीं घावे के सिद्धांत को मानते आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि घर परिवार के अन्य सदस्यों को भी यही करते देखता आया हूं।
अब लोग भी घायल वन्यजीवों की सूचना वन विभाग के साथ फरसाराम को देते हैं। तब वे स्वयं अपने स्तर पर वन्यजीव का प्राथमिक उपचार करते हैं। अपने पास दवा, स्प्रे व पट्टी हर वक्त रखते हैं। इसके बाद घायल जीव को रेस्क्यू के लिए सम्बंधित वन विभाग को सूचना देते हैं। कई बार खुद वाहन के जरिए पहुंचाते हैं।
सिलाई से कमाई, उसका एक हिस्सा प्रकृति को
मूक बधिर होने के कारण सुन नहीं सकते लेकिन डिजिटल युग में स्मार्टफोन चलाना सीख लिया है। वाट्सएप के माध्यम से रात दिन किसी भी समय वन्य जीवों के प्रति कोई भी सूचना मिलती है तो क्षेत्र में सबसे पहले पहुंच जाते हैं। वे सिलाई का काम करते हैं और उससे मिलने वाली आमदनी का एक हिस्सा वन्यजीवों के उपचार में खर्च करते हैं।
इस गर्मी में सरकार व वन विभाग हर जगह वन्य जीवों के लिए चारे पानी की व्यवस्था नहीं कर पा रहे। ऐसे में वे खुद सुबह शाम अपने क्षेत्र में जगह-जगह रोही में कुएं में टैंकरों के माध्यम से पानी डलवा रहे हैं। वहीं प्रत्येक वर्ष 5 पौधे अपने क्षेत्र की सरकारी भूमि पर लगा रहे हैं। पिछले 10 वर्षों से उनको पानी पिलाकर बड़ा कर दिया है। ग्रामीण व वन विभाग के अधिकारी भी इनके योगदान की सराहना कर रहे हैं।