पाली,सदर थाने के पास पुलिया के नीचे घरेलू गाैरेया ने अपना एक नया पूरा आशियाना बना लिया है। दाे से ढाई हजार गाैरेया ने मिट्टी से यहां पर बड़ी संख्या मेंअपने घर बना लिए हैं। पुलिया के पास नहर बह रही है तथा उसके पास गीली मिट्टी है। यहीं से गाैरेया गीली मिट्टी लेकर पुलिया के नीचे अपना घर बना रही है। घरेलू गौरैया यूरोप और एशिया में सामान्य रूप से हर जगह पाया जाता है।
इसके अलावा मनुष्य ने जहां-जहां अपना घर बनाया उसने उसके आसपास अपना घाेसला बना दिया। शहरी इलाकों में गौरैया की छह तरह ही प्रजातियां पाई जाती हैं। ये हैं हाउस स्पैरो, स्पेनिश स्पैरो, सिंड स्पैरो, रसेट स्पैरो, डेड सी स्पैरो और ट्री स्पैरो। इनमें हाउस स्पैरो को गौरैया कहा जाता है। यह शहरों में ज्यादा पाई जाती हैं।
शहर में कम हाे रही संख्या
पिछले कुछ सालों में शहरों में गौरैया की कम होती संख्या पर चिंता प्रकट की जा रही है। बहुमंजिली इमारतों में गौरैया को रहने के लिए पुराने घरों की तरह जगह नहीं मिल पाती। इससे गौरेया को दाना नहीं मिल पाता है। वहीं बढ़ते तापमान का भी इस पर असर पड़ता है। इस कारण से खाना और घोंसले की तलाश में गौरेया शहर से दूर निकल जाती हैं और अपना नया आशियाना तलाश लेती है।
पहाड़ी स्थानोंपर कम दिखाई देती
वन्य जीव विशेषज्ञ राहुल भटनागर ने बताया कि आज विश्व में अधिक पाए जाने वाले पक्षियों मेंसे है। गोरैया एक छोटी चिड़िया है। यह हल्की भूरे या सफेद रंग में होती है। इसके शरीर पर छोटे-छोटे पंख, पीली चोंच व पीले पैर होते है। नर गोरैया का पहचान उसके गले के पास काले धब्बे से होता है। 14 सेमी. लंबी यह चिड़िया मनुष्य के बनाए घरों के आसपास रहना पसंद करती है। यह हर तरह की जलवायु पसंद करती है पर पहाड़ों में कम दिखती है।