कोटा,काेराेना वायरस के कहर के बीच प्रदेश में प्री-मानसून की दस्तक हाे चुकी है। दैनिक भास्कर ने बदलते माैसम में काेराेना वायरस के खतरे काे लेकर काेटा के प्रमुख डाॅक्टर्स से बात की, ताे चाैंकाने वाली बात सामने आई। सीनियर फिजिशियन डॉ. मनोज सालूजा और सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. साकेत गोयल का कहना है कि फिलहाल कोरोना संक्रमण से निजात मिलने की उम्मीद नहीं है, बल्कि बारिश के मौसम में यह तेजी से बढ़ सकता है। नमी वायरस को ज्यादा समय तक जिंदा रख पाती है, ऐसे में इस मौसम में हमें पहले से ज्यादा अलर्ट रहना होगा।
20 फीट तक जा सकता है वायरस
कोरोना वायरस सर्दी व नमी वाले मौसम में तीन गुना अधिक फैल सकता है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि छींकने या खांसने के दौरान निकलने वाले संक्रामक ड्रॉपलेट्स वायरस को 20 फीट की दूरी तक ले जा सकते हैं। ऐसे में हमें उन लाेगाें से 20 फीट की दूरी रखनी हाेगी, जिन्हें लगातार खांसी या छींक आ रही हाे। अमेरिका के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय की रिसर्च में भी यही बात सामने आई है।
छींकने, खांसने से निकलने वाले ड्रॉपलेट्स खतरनाक
छींकने, खांसने और सामान्य बातचीत के दौरान भी लगभग 40,000 ड्रॉपलेट्स निकल सकते हैं, जो एक सेकंड में 100 मीटर दूर जा सकते हैं। इनसे वायरस कितनी तेजी से बढ़ता है, इसका निर्धारण ड्रॉपलेट्स की गति, वातावरण और वायरस में आने वाले बदलाव पर निर्भर करता है।
सूक्ष्म कणों के जरिए हवा में घंटों रह सकता है वायरस
खांसने या छींकने के दौरान जो ड्रॉपलेट्स निकलते हैं, उनमें से बड़ी बूंदें गुरुत्वाकर्षण के कारण किसी चीज पर जम जाती हैं। छोटी बूंदें तेजी से वाष्पित हो जाती हैं। ये कण घंटों हवा में घूमते रहते हैं और अपने साथ वायरस काे ले जाने में सक्षम होते हैं।
वायरस का मौसम से संबंध
ठंडे व आर्द्र मौसम में छींकने या खांसने के दौरान निकलने वाले ड्रॉपलेट्स जहां तकरीबन 20 फीट की दूरी तक जा सकते हैं। वहीं गर्म व शुष्क मौसम में ये ड्रॉप्स तेजी से वाष्पित होकर एरोसोल कणों में बदल जाते हैं। ये लंबे समय तक हवा में मौजूद रहते हैं और लंबी दूरी तक संक्रमण फैलाने में सक्षम होते हैं। ये छोटे कण फेफड़ों में अंदर भी जा सकते हैं, जिससे तकलीफ बढ़ जाती है।
एक्सपर्ट व्यू: किसी काे खांसी या छींक आ रही हाे ताे 20 फीट दूर रहें
वायरस के लिए नमी वाला मौसम अनुकूल होता है। कोरोना नया वायरस है और इसे लेकर बहुत स्टडी की जरूरत है। विदेशों की स्टडी हमारे यहां इसलिए लागू नहीं होती, क्योंकि वहां की हर परिस्थिति यहां से अलग होती है। हमारी छींक या खांसी के दौरान निकलने वाली ड्रॉपलेट्स और उससे बनने वाले न्यूक्लियस वायरस को ट्रांसमिट करते हैं। अब जैसे न्यूक्लियस बनने के बाद वह शुष्क रहा तो ज्यादा देर तक नहीं रह पाएगा, लेकिन उसमें नमी रही तो वह काफी समय तक रहेगा और उसमें मौजूद वायरस भी। हम मानते हैं कि धातु की सरफेस पर 4 से 7 दिन तक ड्रॉपलेट्स रह सकती है, लेकिन नमी वाले मौसम में यह इससे भी ज्यादा समय तक रह पाएगी।
कोविड को लेकर भारतीय परिप्रेक्ष्य में ज्यादा स्टडी नहीं हुई है। वैसे तो नमी में सभी तरह के वायरस ज्यादा समय तक रह पाते हैं। पहले हम मानते थे कि गर्मी में वायरस कमजोर होगा, लेकिन भीषण गर्मी में हमारे यहां केस घटने की बजाय बढ़े। मैन टु मैन फैलने वाली बीमारियों में वायरस का जेनेटिक्स कमजोर होना सबसे महत्वपूर्ण होता है।
अब यूएसए में भी इसकी मारक क्षमता पहले से कम दिखने लगी है। यह किसी भी वायरस के जेनेटिक बदलाव का हिस्सा है। यह हॉस्ट के लिए कम खतरनाक होते जाते हैं। लेकिन हमें सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि अभी भारतीय स्तर पर इस पर बहुत ज्यादा स्टडी नहीं हुई है। मेरा मानना यह है कि इस मानसून सीजन को डिस्टेंस मेंटेन करते हुए घरों से ही एंजॉय करें।
बारिश के साथ ही कोटा में बढ़ जाता है डेंगू-स्वाइन फ्लू का खतरा
कोटा में डेंगू सर्वाधिक कहर बरपाने वाली बीमारी है। बीते कुछ सालों में इस बीमारी ने कोटा में कई जानें ली हैं। जून में जैसे ही बारिश शुरू होती है, इसके बाद इक्कादुक्का मरीज आने लगते हैं और अगस्त से दिसंबर तक बड़ी संख्या में मरीज रिपोर्ट होते हैं।
इस बार कोरोना के साथ इस बीमारी से भी लड़ना है, ऐसे में चिकित्सा विभाग को उसी हिसाब से तैयारियां करनी होगी। भास्कर ने बीते कुछ सालों का ट्रेंड देखा तो सामने आया कि कोटा में जून से दिसंबर तक डेंगू मरीज आते हैं। 2019 में ही जून-जुलाई में इक्कादुक्का मरीज रिपोर्ट हुए, इसके बाद अगस्त में 38, सितंबर में 137, अक्टूबर में 494, नवंबर में 525 और दिसंबर में 118 मरीज रिपोर्ट हुए थे। इसी तरह सितंबर-अक्टूबर काे स्वाइन फ्लू वायरस के लिए अनुकूल माना जाता है।
2017 और 2018 में इन्हीं दो माह में सबसे ज्यादा स्वाइन फ्लू मरीज सामने आए थे। हालांकि पिछले साल 2019 में स्वाइन फ्लू की स्थिति कंट्रोल थी, इसकी वजह डॉक्टरों ने यह मानी थी कि बड़ी संख्या में लोग इसके टीके लगाने लगे हैं, ऐसे में अब इस बीमारी के प्रति हर्ड इम्युनिटी पैदा होने जैसी स्थिति बनने लगी है।
सीएमएचओ डॉ. बीएस तंवर ने इस बारे में भास्कर को बताया कि मैंने कल ही डेंगू व अन्य मौसमी बीमारियों को लेकर अधिकारियों की मीटिंग ली है। हमारी टीमों को कहा है कि वे कूलर-टंकियां चेक करना शुरू कर दें।