कान्हड़ दास धाम रामद्वारा में प्रवचन में संत गोपालरामजी महाराज ने कहा कि यदि आप संत नहीं बन सकते तो सद्गृहस्थ बनिए और घर को पहले वैकुंठ धाम के समान बनाइए। जो अपने घर-परिवार में प्रेम नहीं घोल पाया वह भला समाज में क्या प्रेम रस घोल पाएगा। जो अपने सगे भाई को ऊपर उठा न पाया, वह समाज को क्या ऊपर उठा पाएगा?
संत ने कहा कि ईंट, चूने, पत्थर से मकान का निर्माण होता है, घर का नहीं। जहां केवल पत्नी-बच्चे रहते हैं वह मकान घर है, पर जहां माता-पिता और भाई-बहिन भी प्रेम और आदरभाव के साथ रहते हैं वही घर परिवार कहलाता है। घर को मंदिर बनाने की प्रेरणा देते हुए संत ने कहा जहां हम आधा-एक घंटा जाते हैं, उसे तो मंदिर मानते हैं, पर जहां 24 घंटे रहते हैं, उस घर को मंदिर क्यों नहीं बनाते हैं।
हमने घर का वातावरण अच्छा बना लिया तो हमारा घर-परिवार ही मंदिर- रामद्वारा धाम बन जाएगा। संत ने कहा कि हम किसी के आंसू पोंछ सकते हैं तो अच्छी बात है, पर हमारी वजह से किसी की आंखों में आंसू नहीं आने चाहिए। घर के सभी सदस्य एक-दूसरे के काम आए। घर में सब श्रम की आहूति दें।
घर में काम करना यज्ञ में आहूति देने जितना पुण्यकारी है। घर को बैकुंठ धाम बनाने के सूत्र देते हुए कहा कि घर के सभी सदस्य साथ में बैठकर भोजन करें , एक-दूसरे के, सुख-दुख में साथ निभाएं, स्वार्थ को आने न दें, भाई-भाई को आगे बढ़ाएं, सास-बहू के रिश्तों में प्रेम बढ़ाएं। संत पुनीत राम महाराज ने स्वामी रामचरणजी महाराज की अनुभव वाणी का पाठ किया।
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