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सोमवार, 7 सितंबर 2020

फलोदी व बाप क्षेत्र की दूरदराज ढाणियों में 10-12 वीं के विद्यार्थी अपने आसपास के घर-परिवार के बच्चों को करवा रहे हैं पढ़ाई

(पूनमचंद विश्नोई). कोरोना महामारी में स्कूलें कब खुलेंगी, कुछ कहा नहीं जा रहा। ऐसे में बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होकर रह गई है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। यहां न तो स्मार्ट फोन हैं और न ही इंटरनेट। कहीं तो बिजली भी नहीं पहुंच पाई है। जून-जुलाई तक लोग इंतजार में थे कि स्कूलें खुल जाएंगी। लेकिन सितंबर भी जा रहा।

ऐसे में फलोदी व बाप के दूरदराज क्षेत्रों में दूसरा दशक एनजीओ ने स्थानीय बच्चों की सहायता से एक नई पहल की है। इसमें बड़ी कक्षाओं के बच्चे अपने घर के आसपास के छोटी कक्षाओं के बच्चों को पढ़ाई करवा रहे हैं। इस पहल का नाम है छोटे मास्टर।

4 लड़कियों सहित 23 विद्यार्थी शिक्षक के रूप में 126 बच्चों को पढ़ाई करवा रहे हैं। ताकि जब भी स्कूल खुले तो कोर्स का कोई दबाव न हो और न ही पढ़ाई की आदत छूटे। इन बच्चों को पढ़ाने की प्रेरणा दूसरा दशक की वरिष्ठ कार्यकर्ता अमरू चौधरी से मिली। चौधरी आसपास के गांवों में सौर्य ऊर्जा के सहयोग से चल रहे शिक्षा कार्यक्रम की समन्वयक है।

विजन: अपने से छोटी उम्र के बच्चों को पढ़ाना
दूसरा दशक के मुरारीलाल थानवी ने बताया कि विद्यार्थियों को प्रोत्साहित किया गया कि वे परिवार व आसपास के एक, दो, तीन, चार या पांच बच्चों को पढ़ाएं। खुद भी पढ़ें। फिर छोटे मास्टर का कॉन्सेप्ट आया। उन्हें पहले प्रशिक्षित भी किया।

अब छोटे मास्टर प्रार्थना, गीत गाना व दोहे बोलना और इनमें आए शब्दों के मतलब सिखाने, गिनती, पहाड़े, कविताएं, शब्दों को धीरे-तेज बोलने, शब्दों में आए वर्णों की पहचान करवाना, कहानी सुनना और सुनाना, कहानी में आए शब्दों, घटनाओं पर चर्चा करना, शब्दों को साफ बोलने का अभ्यास करवाना, अंग्रेजी शब्दों की सूची बनवाना, नये-नये शब्दों को सीखना, बोलने की प्रैक्टिस करना, किताब पढ़ाना, जो पढ़ा है उससे सवाल पूछना, राइटिंग सुधारना, रोजाना एक पेज लेख लिखवाना, एबीसीडी लिखाना, नये-पुराने खेल सहित अन्य गतिविधियों से पढ़ाई करा रहे हैं। सभी छोटे मास्टर को दूसरा दशक फोटो सहित डिजीटल प्रमाण-पत्र दे रहा है। उन्होंने बताया कि सोशल डिस्टेंस व कोरोना गाइडलाइन की पूरी पालना के साथ यह पढ़ाई करवा रहे हैं।

कोई सुबह तो कोई शाम को 2 से 3 घंटे करा रहे पढ़ाई

  • कमल मेघवाल

इसी वर्ष 11 वीं कक्षा पास की है। वह बताते हैं कि मैं बाप गांव में घर के पास माताजी मंदिर में दोपहर 3 बजे से 5 बजे तक बच्चों को पढ़ा रहा हूं। पहली से आठवीं तक के 10-12 बच्चे आ रहे हैं। कभी संख्या अधिक होती है तो उन्हें घर भेज देता हूं। वह खुद पढ़ाने के लिए पूर्व तैयारी करता है। किसी सवाल का उत्तर मुझे नहीं आता है तो पता करके अगले दिन बताता हूं। इससे मेरा नॉलेज भी बढ़ रहा है। स्कूल खुलने तक मैं बच्चों को पढ़ाता रहूंगा।

  • मुख्तियार

कालू खां ढाणी के मुख्तियार ने छोटे मास्टर के रूप में पढ़ाना शुरू किया। वे बताते हैं कि मुझे सौर्य ऊर्जा कंपनी और दूसरा दशक पुस्तकालय की पुस्तकें, बोर्ड आदि मिले हैं। फिलहाल 7-8 बच्चों को पढ़ा रहा हूं। इससे मैं खुश हूं और बच्चे भी खुशी-खुशी पढ़ाई करने आ रहे हैं। ढाणियों में 7 और छोटे मास्टर तैयार किए हैं। वे भी 30-35 बच्चों को पढ़ा रहे हैं। सरकारी स्कूल के हैडमास्टर लेखराम विश्नोई ने मुख्तियार को इसकी शाबाशी दी है।

  • सपना राजपुरोहित

खीचन में भूरा बाबा मंदिर के पास रहने वाली सपना को 2013 में 8वीं के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी क्योंकि स्कूल 4 किमी दूर था। अब दूसरा दशक की मदद से ओपन स्कूल से दसवीं की तैयारी कर रही है। छोटे मास्टर बन कर पड़ोस के पहली से पांचवी कक्षा तक के बच्चों व दो निरक्षरों को गिनती व एबीसीडी सिखा रही है। सपना शिक्षिका बनाना चाहती थी, लेकिन डर था कि कैसे पढ़ाऊंगी। अब मौका मिला है तो आत्मविश्वास भी बढ़ा।​​​​​​​



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खीचन में भूरा बाबा मंदिर के पास रहने वाली सपना को 2013 में 8वीं के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी क्योंकि स्कूल 4 किमी दूर था