उदयपुर | काेराेना काल में संक्रमण से बचाव के लिए टीके की अहमियत काे समझते हुए जहां देश-दुनिया के वैज्ञानिक वैक्सीन की खाेज में जुटे हुए हैं। वहीं जिले के अस्पतालों में बच्चाें काे लगने वाले सामान्य टीकाकरण का लक्ष्य भी पूरा नहीं हाे पा रहा है। कोरोना काल ने टीके की अहमियत को समझाया है, लेकिन जिले में टीकाकरण में गिरावट भारी चिंता का विषय है।
इधर अप्रैल से जुलाई महीने में चिकित्सा विभाग टीकाकरण के लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाया। लॉकडाउन के बाद से अब तक जिलेभर में 88.78 फीसदी टीके लगाए गए, जबकि यह आंकड़ा पिछले साल 95 फीसदी से भी ज्यादा था। इस मामले में शहरी क्षेत्र के हाल अाैर भी बुरे हैं। जहां टीकाकरण पिछले साल के मुकाबले 139.96 फीसदी से घटकर 91.50 तक रह गया।
इसमें भी खसरा-रूबेला (एमआर) से बचाव के लिए लगने वाले टीके में 4 फीसदी और बीसीजी में 10 फीसदी तक गिरावट रही। विशेषज्ञाें का कहना है कि एमआर और बीसीजी के टीके में गिरावट चिंता का विषय है। आरएनटी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. लाखन पोसवाल ने बताया कि नवजात काे जन्म के बाद बीसीजी और 9 महीने बाद एमआर (खसरा-रूबेला) का टीका लगाया जाता है।
खसरा जैसे जानलेवा और तेजी से फैलने वाले संक्रामक रोग से बच्चों में संक्रमण की आशंका बनी रहती है। इससे शिशु में अंधापन, बहरापन, मानसिक मंदता और दिल की बीमारी का खतरा बना रहता है। इस पर आरसीएचओ डॉ. अशोक आदित्य ने कहा कि टीकाकरण में गिरावट दर्ज हुई है।
लॉकडाउन में लगभग 2 महीने के करीब सेशन बंद रहे। हम टीकाकरण में फिर से तेजी लाने का प्रयास कर रहे हैं। स्वास्थ्य केंद्र और आंगनबाड़ी केंद्रों पर प्रस्तावित करीब 4000 सत्र लॉकडाउन के चलते नहीं हो पाए। इस अंतर को कम करने को प्रयास किया जा रहा है। कुछ जगह पर स्टॉफ की कमी होने से भी दिक्कतें है।
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