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गुरुवार, 3 सितंबर 2020

दिव्यांग रायचंद की कांस्टेबल बेटी नौ साल बाद बनी समाज की पहली महिला सब इंस्पेक्टर

खुद को मजबूत करने का इरादा हो तो मुश्किलें बाधा नहीं बन सकती। यह साबित कर दिखाया है मंगले की बेरी निवासी लक्ष्मी ने। लक्ष्मी के पिता रायचंद राम दिव्यांग हैं, शुरू से ही लक्ष्मी की जिंदगी संघर्षभरी रही। चुनौतियों के बावजूद उसने हिम्मत नहीं हारी।

कक्षा बारहवीं उत्तीर्ण करने के बाद पुलिस भर्ती परीक्षा दी। जुलाई 2011 को उसका बाड़मेर में पुलिस कांस्टेबल पद पर चयन हो गया। ट्रेनिंग के बाद भी पुलिस की ड्यूटी के साथ-साथ अपनी शिक्षा को बदस्तूर जारी रखा। बीए के बाद उसने एमए किया, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी जारी रखी।

शुरू में लोगों ने जरूर ताने दिए कि अब क्या पढ़कर क्या करोगी। लेकिन उसने अफसर बनने की मन में ठान ली। नौ साल लंबे संघर्ष के बाद हाल ही में जारी हुए राजस्थान पुलिस सब इंस्पेक्टर के परिणाम में लक्ष्मी का चयन हुआ है। फिलहाल वह महिला कांस्टेबल के रूप में पुलिस महिला थाना बाड़मेर में सेवाएं दे रही है।

कांस्टेबल बनने के बाद उसकी उम्मीदों के पंख लगे, आगे की पढ़ाई जारी रखते हुए स्नातक एवं स्नातकोत्तर भी किया। प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर राजस्थान पुलिस सब इंस्पेक्टर की परीक्षा दी। हाल ही में जारी हुए परीक्षा परिणाम में उसका अंतिम सूची में चयन हुआ है। मेघवाल समाज की वह पहली महिला सब इंस्पेक्टर बनी है। इसकी सूचना मिलने पर गांव में खुशी की लहर छा गई। ग्रामीणों ने घर पहुंचकर लक्ष्मी व उसके परिजनों को बधाई दी।

घर में पढ़ाई का माहौल न कोई मार्गदर्शक, अपने ही बूते मेहनत व लगन से लक्ष्मी ने हासिल की सफलता

बारहवीं पास करने के बाद पुलिस कांस्टेबल में भर्ती हुई लक्ष्मी ने कुछ अलग करने की ठानी। उसके परिवार में अन्य कोई सदस्य सरकारी सेवा में नहीं है। दो भाइयों की इकलौती बहन ने यह साबित कर दिखाया कि न तो बेटियां कमजोर है और न ही मुश्किलें बड़ी है।

उसके दाेनों भाई मजदूरी करते हैं, पिता दिव्यांग हैं। पति भी निजी कार्य कर रहे हैं। परिवार में वह पहली सदस्य है जिसने कांस्टेबल से शुरुआत कर सब इंस्पेक्टर बनने का मुकाम हासिल किया। लक्ष्मी ने बताया कि वह ड्यूटी के साथ पारिवारिक जिम्मेदारियां निभा रही है। घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद हिम्मत नहीं हारी।लंबे संघर्ष के बाद सफलता मिलने से वह बेहद खुश है



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