कोरोना महामारी ने जहां 7 महीने में 88 लोगों की जान ली, वहीं आगरा-जयपुर नेशनल हाइवे पर हादसों का कारण बने आवारा जानवरों ने पिछले 9 महीने में 74 लोगों की जान ले ली। ये लोग 138 दुर्घटनाओं में मौत के शिकार हुए हैं। सर्वाधिक 51 हादसे सेवर इलाके में हुए हैं जिनमें 27 लोगों ने जान गंवाई है। इस हाइवे पर हर 500 मीटर की दूरी में 5 से 7 आवारा जानवर बैठे मिल जाते हैं।
टोल कंपनी के ठेका शर्तों में यह प्रावधान है कि सुरक्षित सफर के लिहाज से हाइवे को हर समय एकदम क्लियर रखा जाएगा। यानि, कोई भी ऐसी चीज नहीं होनी चाहिए जो हादसों को न्यौता देती हो। भले ही, दुर्घटनाग्रस्त वाहन हों, आंधी-तूफान से गिरे पेड़-पौधे अथवा आवारा जानवर। इसके लिए टोल प्लाजा पर बाकायदा एक इन्सीडेंट ऑफिसर बैठता है।
जिसके पास स्टाफ और पेट्रोलिंग गाडिय़ां होती हैं। इन गाड़ियों को अपने क्षेत्र में नियमित गश्त करके हाइवे से तमाम अवरोधकों को हटाना होता है। लेकिन, भास्कर संवाददाता ने सेवर से छोंकरवाड़ा तक करीब 45 किलोमीटर के एरिया में 153 जानवर गिने जो हाइवे के डिवाइडर अथवा बीच रोड में बैठे हुए थे। यह स्थिति लगभग सभी हाइवे की है।
सबसे ज्यादा सेवर और सबसे कम अटल बंध इलाके में हुए हैं हादसे
थाना दुर्घटना मौत
चिकसाना 17 10
अटलबंध 04 01
मथुरागेट 13 03
सेवर 51 27
लखनपुर 18 17
हलैना 13 06
भुसावर 22 10
एक्सीडेंटः 138 एवं 74 मौतें
एक्सपर्ट व्यूः जानवरों को रोकने के लिए एक-दो पैच पर फेंसिंग लगाएं
इस संबंध में सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक सतीश चन्द्र ने बताया कि हाइवे पर अगर एक-दो पैच ऐसे हैं, जहां से जानवर रोड पर आते हैं। वहां पर फेंसिंग लगवाई जा सकती है। अगर लंबा पैच है तो वहां फेंसिंग लगवाना प्रैक्टिकली संभव नहीं होता। क्योंकि इसमें काफी लागत आती है।
बेरिकेडिंग करना एनएचएआई की जिम्मेदारी : परिवहन मंत्री
- एनएचएआई के नियमों में है कि वह सड़क दुर्घटनाएं रोकने के लिए हाइवे के दोनों ओर फेंसिंग कराए। ऐसा नहीं करने पर संबंधित टोल कंपनी पर जुर्माना लगाया जा सकता है। मैं इस बारे में केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी और एनएचएआई के अधिकारियों से बात करूंगा। हाइवे के दोनों ओर बेरिकेडिंग कराएंगे, नहीं तो टोल कंपनी पर जुर्माना करेंगे। - प्रताप सिंह खाचरियावास, परिवहन मंत्री, राजस्थान
जानवर के गाड़ी के सामने आने से होते हैं हादसे
इस नेशनल हाइवे का यूपी बॉर्डर ऊंचा नगला से लेकर कमालपुरा बॉर्डर तक करीब 72 किलोमीटर का हिस्सा भरतपुर जिले में पड़ता है। इसमें 7 पुलिस थानों की सीमाएं लगती हैं। इनमें सर्वाधिक 51 हादसे सेवर इलाके में हुए हैं। जिनमें 27 लोगों को जान गंवानी पड़ी है।
पुलिस की मानें तो अधिकांश हादसों की वजह या तो किसी आवारा जानवर का अचानक गाड़ी के सामने आ जाना अथवा किसी जानवर को बचाते समय गाड़ी अनियंत्रित हो जाना है। क्योंकि नेशनल हाइवे होने की वजह से ज्यादातर वाहनों की स्पीड 80, 100 और 120 किलोमीटर प्रति घंटा रहती है।
टोल रेट कम हैं, इसलिए बाड़बंदी नहीं कर सकते
आगरा-जयपुर राजमार्ग पर बाड़बंदी का कोई प्रावधान नहीं है। यहां टोल की दरें काफी कम हैं। जिन हाइवे पर बाड़बंदी की जाती है, वहां टोल दर सामान्य से करीब डेढ़ गुना होती हैं। वैसे टोल कंपनी की जिम्मेदारी है कि वह रोड सेफ्टी के लिए सभी तरह के कदम उठाए। -वाईबी सिंह, पीडी एनएचएआई
रोड सेफ्टी को नियमित कराते हैं पेट्रोलिंग
- राजमार्ग पर रोड सेफ्टी के लिए हम नियमित पेट्रोलिंग कराते हैं। कर्मचारी आवारा पशुओं को नेशनल हाइवे से हटाते भी हैं। खेतों में जब फसलें खड़ी हों तब हाइवे पर जानवरों की संख्या ज्यादा बढ़ जाती है। - प्रमोद सिंह, एक्सीडेंट मैनेजर, मार्को लाइन टोल कंपनी
एनएचएआई और टोल कंपनी पर करें केस : मुदगल
- हाइवे पर आवारा जानवर से जानमाल की हानि का नुकसान होने पर उपभोक्ता आयोग में केस किया जा सकता है। अगर टोल नहीं दिया है तो सिविल कोर्ट में केस करके मुआवजा मांगा जा सकता है। दुर्घटना में मौत होने पर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण में भी मुकदमा कर सकते हैं। केस में एनएचएआई और संबंधित अथॉरिटी को पार्टी जरूर बनाएं। - दीपक मुद्गल, सदस्य, जिला उपभोक्ता आयोग, भरतपुर
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