
पहले बरसात और अब धान के शुरुआती भाव किसानों को रूलाने लगे हैं। आगे भी भावों में तेजी आने के आसार कम दिख रहे हैं। कृषि उपज मंडी में धान की आवक शुरू हो चुकी है। आने वाले दिनों में आवक बढ़ती जाएगी। धान की किस्म 1509 के शुरुआती भाव 1850-1900 रुपए प्रति क्विंटल रहे। अभी भाव गीले माल के 1200-1500 रुपए व सूखे माल के 1600-1800 रुपए प्रति क्विंटल चल रहे हैं। भावों में स्थिरता देखी जा रही है, यानी शुरुआत के अधिकतम भावों को भी नहीं छू पा रहे है।
अब पिछले साल पर नजर डाले तो धान की किस्म 1509 के शुरुआत भाव गीले माल के 2100-2400 रुपए व सूखे माल के 2500-2700 रुपए प्रति क्विंटल रहे थे। यानी किसानों को पिछले साल के शुरुआती भावों को देखते हुए ही 800 से 1000 रुपए कम का भाव मिल रहा है। अभी तो धान की कटाई भी पूरी तरह से शुरू नहीं हो पाई है। ऐसे में आने वाले दिनों में मंडी धान के ढेरों से ठसाठस रहेंगी।
मिलों में पड़ा है 1509 का स्टॉक
कोरोना संकटकाल में लॉकडाउन में चावल मिलें संचालित रही और देशभर में चावल पहुंचाया जाता रहा। चावल की अन्य किस्म तो बिक गई, लेकिन मिलों में 1509 चावल का स्टॉक पड़ा हुआ है। दूसरी ओर, अधिकांश जगहों पर खेतों में धान खड़ा हुआ है, जिनका माल पक गया, उन्होंने कटाई करवा ली, लेकिन अब भावों को देखते हुए मंडी में लाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं।
कापरेन के किसान हेमंत पंचोली और रामू शर्मा ने बताया कि 7 दिन पहले ही धान निकलवा लिया। जितनी उम्मीद थी, उतनी उपज भी नहीं बैठी। अब मंडी में भावों की जानकारी से ही दिल घबरा रहा है। घर पर ही 150-200 क्विंटल धान पड़ा हुआ है।
90 दिन में तैयार हो जाता है 1509...इसलिए किसानों की पसंद बना
जिले में अधिकांश किसानों ने धान की किस्म 1509 ही की है। इसका सबसे बड़ा कारण यह भी है कि यह किस्म 90 दिन में तैयार हो जाती है। यानी जल्दी बोओ और जल्दी काटो। इस किस्म को मप्र, उप्र, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान में बोया जाता है। ऐसे में मांग व आपूर्ति का संतुलन बिगड़ा हुआ है। पिछले साल निर्यात के चलते बाजार में मांग थी। ऐसे में 1509 चावल का भाव 46 रुपए किलो था, जबकि इस बार इरान से निर्यात बंद है तो भाव भी 36 रुपए किलो है। यानी इस चावल के फिलहाल लेवाल नहीं है। इसका सीधा असर मंडी में बिकने के लिए आ रहे धान पर देखने को मिल रहा है।
एक्सपर्ट व्यू-इसलिए बिगड़ रहा संतुलन
किसान बिना सोचे समझे माल को लगा रहे है, उन्हें बाजार की जानकारी लेनी चाहिए। जिस किस्म की आवश्यकता है, उसी की पैदावार करें। अधिक पैदावार के कारण संतुलन बिगड़ रहा है। ईरान सबसे बड़ा खरीदार है। वह बाजार में रहता तो भाव में गिरावट नहीं रहती। किसान पूसा वन लगाते तो यूरोपीय बाजार मिलता।
-राजेश तापड़िया, अध्यक्ष, चावल उद्योग संघ
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