पाली,पाली सेन्ट्रेल काॅ-आॅपरेटिव बैंक के संचालक मण्डल को साजिशपूर्ण तरीके से भंग करने एवं संचालक मंडल पर लग रहे विभिन्न आरोपों के खण्डन को लेकर सोमवार को मण्डल अध्यक्ष पुष्पेन्द्रसिंह कुडकी ने प्रेसवार्ता रखी। प्रेसवार्ता में कुडकी ने कहा कि स्थानीय स्टॉफ में शामिल चंद लोगों की सहायता से राजनीतिक शह के कारण बैंक के शेयरहोल्डर्स की ओर से चुने गए संचालक मंडल को भंग करने की साजिश रची जा रही है। उन्होंने कहा कि एनपीए में बढ़त के साथ सोलर घोटाले, ऋण घोटाले के आरोप लगाकर बोर्ड के संचालक मंडल को निशाना बनाया जा रहा हैं। संचालक मंडल एक बार ध्वस्त हो चुका हैं, लेकिन राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेश पर संचालक मंडल को दोबारा बैंक संबंधी कामकाज सौंपा गया है। बावजूद इसके अब भी राजनीतिक षडयंत्र के चलते संचालक मंडल को पदों से हटाकर बैंक की साख को प्रभावित किया जा रहा है।
हक की लड़ाई के लिए लेनी पड़ी शरण -
कुडकी ने कहा कि बैंक के संचालक मंडल का काम पॉलिसी बनाना होता हैं। संचालक मंडल न तो सीधे तौर पर किसी को ऋण देता है और न ही बैंक के कामकाज में सीधे तौर पर सहभागिता करता है। 2008 से पहले बैंक में प्रशासक का होल्ड हुआ करता था। 08 में उनकी अध्यक्षता में संचालक राजस्थानमंडल बनने के बाद बैंक ने न सिर्फ एनपीए में कमी दर्ज की, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर अच्छे कामकाज के लिए अवार्ड भी प्राप्त किया। वर्ष 2005 में बैंक का एनपीए 14.73 था, जिसे वे अभियान की मूरत देकर 15-16 में 2.55 तक लेकर आए थे, लेकिन इसके बाद नोटबंदी और कोरोनाकाल में रिकवरी पर रोक के कारण ये बीते साल तक बढ़ गया। इसे आधार बनाकर उनकी अध्यक्षता में बने संचालक मंडल को भंग कर दिया गया। इसके विरोध में वे उच्च न्यायालय गए। न्यायालय ने संचालक मंडल को दोबारा प्रतिष्ठापित किया।
ऋण की किश्तें आ रही है बराबर -
कुडकी ने बताया कि जिन 68 फाइलों को लेकर मीडिया में ऋण को लेकर संचालक मंडल पर सवाल उठाए गए, उनमें से 38 में किश्ते बराबर आ रही है। 23 फाइलों में भ्रम की स्थिति है, जबकि 2 फाइलों में ऋण का चुकारा हो चुका है। 08 से पहले बैंक में प्रशासक की ओर से बनाई गई नोटशीट पर ऋण वितरण होता था, लेकिन हमने इसे अधिक पारदर्शी बनाया। हमने ऋण के आवेदन को फाइल का रूप दिया। 29 बिन्दुओं का एक फॉरमेट बनाया और तय किया कि इन 29 बिन्दुओं की पूर्ति किए बिना किसी को ऋण की स्वीकृति नहीं दी जाए। उन्होंने साफ किया कि बैंक की ओर से दिए जाने वाले ऋण की स्वीकृति चेयरमैन नहीं देता है। उसके पास तो एक रजिस्टर में सिर्फ ये सूचना आती है कि फलां व्यक्ति को फलां शाखा से इतना ऋण स्वीकृत किया गया है। खिंवाड़ा क्षेत्र की कुछ शाखाओं में किन्हीं शिकायतों के चलते हमने कुछ सख्त नियम बनाए और सभी शाखाओं में उन्हें लागू किया। हमने नाबार्ड को भी लिखा और आपसी समझाइश से 64 लाख रुपये जमा भी करवाए।